सरकारी जमीन बेचने या लीज पर देने से पहले कैबिनेट की मंजूरी जरूरी

आगे से देश भर में कहीं भी सरकारी जमीन अगर गलत तरीके से बेची या लीज पर दी गई है तो उसके लिए सीधे आप केंद्रीय मंत्रिमंडल को जिम्मेदार ठहरा सकते हैं क्योंकि उसकी मंजूरी के बिना ऐसा नहीं किया जा सकता। कैबिनेट सचिवालय ने सभी प्रमुख मंत्रालयों और विभागों को निर्देश भेजा है कि सरकार या सरकारी संस्थाओं की जमीन बेचने या लीज पर देने पर पहले वित्त मंत्रालय के साथ-साथ केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी जरूरी है।

यह कदम हाल के महीनों में सरकारी जमीन की बिक्री में उजागर हुई तमाम अनियमितताओं के चलते उठाया जा रहा है। बता दें कि इस समय देश में सबसे ज्यादा जमीन रक्षा मंत्रालय के पास है। आदर्श सोसायटी से लेकर दार्जिलिंग का भूमि घोटाला सेना की जमीन को लेकर ही हुआ है। इसके बाद सबसे ज्यादा जमीन भारतीय रेल के पास है। इसके पास 4.32 लाख हेक्टेयर जमीन है जिसमें से वह 44,894 हेक्टेयर का व्यावसायिक इस्तेमाल करने पर विचार कर रही है।

अग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, वित्त मंत्रासय के व्यय विभाग ने हाल ही भेजे गए संदेश में कहा है, “सरकार या सरकार नियंत्रित वैधानिक निकायों की जमीन बेचने या लंबी अवधि की लीज पर देने पर हर मामले में कैबिनेट का विशेष अनुमोदन लिया जाना चाहिए।” साथ ही यह भी कहा है कि स्वायत्त निकयों द्वारा सरकारी फंड ने हासिल आस्तियां या संसाधनों की बिक्री के लिए वित्त मंत्रालय का अनुमोदन जरूरी है।

हालांकि व्यय विभाग ने इसी तरह का सर्कुलर पिछले साल भी भेजा था। लेकिन हाल का निर्देश कैबिनेट सचिवालय की तरफ से भेजा गया है। असल में कैबिनेट सचिवालय ने तमाम ऐसे मामलों पर गौर किया है जिनमें सरकारी जमीन के दाम बेचे जाने या लाइसेंस व लीज पर दिए जाने के बाद बहुत ज्यादा बढ़ गए। वैसे, पुरानी लीज के मामले खोजें तो मुंबई में फीनिक्स मिल कंपाउंड जैसे तमाम निजी संस्थाओं की जमीन सरकार से ही मामूली रकम में लंबे समय की लीज पर ली गई है।

इस बीच कैबिनेट सचिवालय ने एक अलग समिति बना दी है जो विशिष्ट हालात में सरकारी जमीन का बिक्री व हस्तांतरण संबंधित नीति पर काम कर रही है। यह नीति ऐसी होगी कि खास-साख मसलों पर सरकार के दूसरे निर्देश काम नहीं करेंगे। इस तरह सरकार अपना विशेषाधिकार बनाने रखने की जुगत भी करने में लगी है।

सरकार के वित्तीय नियमों के मुताबिक मंत्रालय, सरकारी विभाग और सार्वजनिक क्षेत्र के स्वायत्त निकाय सरकारी की आस्तियों व संसाधनों के मालिक नहीं, बल्कि महज कस्टोडियन है। लेकिन हकीकत में हर मंत्री व आला अधिकारी अपने में बादशाह होता है और सरकारी जमीनों का सौदा बगैर किसी अनुमोदन के धड़ल्ले से करता है। अब इस पर रोक लगाने की कोशिश की जा रही है।

लेकिन नए निर्देश से पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) के तहत लागू की जा रही बहुत सारी परियोजनाएं प्रभावित हो सकती हैं। खासकर सड़क या एयरपोर्ट से जुड़ी उन परियोजनाओं पर असर पड़ेगा जिन्हें बिल्ट ऑन ऑपरेट व ट्रांसफर (बीओओटी) के आधार पर बनाया जा रहा है।

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