फंड वालों! तुम्हारे होने का मतलब क्या है?

सुना है कि म्यूचुअल फंड उद्योग में डिस्ट्रीब्यूशन मॉडल को नए सिरे से ढालने की बात चल रही है, लेकिन मुझे लगता है कि आज अहम जरूरत इस बात की है कि हम खुद से पूछें कि म्यूचुअल फंड उद्योग के बने रहने का ही क्या तुक है। हमें बराबर बताया जाता है कि म्यूचुअल फंड में प्रोफेशनल मैनेजर सबसे जुटाई गई बचत का कुशल प्रबंधन करते हैं और वे खुद अपना पैसा संभालनेवाले औसत निवेशक से बेहतर रिटर्न दे सकते हैं। अगर आप उससे बेहतर रिटर्न दे रहे हैं तो आप निवेशकों को इस बात का यकीन क्यों नहीं दिला पा रहे हैं?

क्या निवेशक इतने बुद्धू हैं कि वे इतना भी नहीं समझ पाते कि उन्हें यहां बेहतर रिटर्न मिल रहा है और फिर भी कहीं और निवेश करेंगे जहां से उन्हें कम रिटर्न मिलेगा। या, ऐसा तो नहीं कि उन तक संदेश पहुंचाने में आपकी तरफ से कोई खामी रह जा रही है? निवेशक बुद्धिमान है। अगर हम हज़ारों म्यूचुअल फंड स्कीमों के होने के बावजूद उसे यकीन दिलाने में सफल नहीं हुए हैं तो इसका मतलब यही हुआ कि हमारे उत्पादों के साथ ही कोई समस्या है। हम मसले की तह तक नहीं पहुंच रहे हैं। निवेशकों को खींचने के दो महत्वपूर्ण सेलिंग प्वाइंट हैं कि उन्हें प्रोफेशनल फंड मैनेजमेंट से फायदा मिलेगा और ऐसे मैनेजमेंट की लागत न्यूनतम रहेगी क्योंकि आप एग्रीगेटर की भूमिका निभाते हो। लेकिन आज की हकीकत यह है कि 60 फीसदी म्यूचुअल फंड स्कीमों ने औसत से कम रिटर्न दिया है।

आप मेरे सामने 3000 स्कीमें पेश कर देते हो, लेकिन मैं इनमें से सही स्कीम कैसे छांट सकता हूं। मुझे एकदम नहीं मालूम कि कौन-सी स्कीम मेरे लिए अच्छी है। अगर आप वाकई उस तथाकथित छोटे निवेशक तक पहुंचना चाहते हैं जिसके नाम पर आप सब कुछ करते हैं तो मेरा सवाल है कि क्या उसे सचमुच 3000 विकल्पों की जरूरत है? क्या वाकई आप इतने अभिनव प्रयोग कर रहे हैं? क्या ये स्कीमें सचमुच एक दूसरे से इतनी अलग हैं? या, इनसेंटिव देने के चक्कर में हमने इन 3000 विकल्पों का जखीरा खड़ा कर दिया?

हमें यह बात समझनी चाहिए कि जो चीज म्यूचुअल फंड उद्योग और वितरकों के हित में है, वह जरूरी नहीं है कि निवेशकों के भी हित में हो। अगर निवेशकों का भरोसा चला गया तो यह समूचा उद्योग ही धराशाई हो जाएगा। अभी तो हो यह रहा है कि सारा ध्यान बेहद थोड़े वक्त के प्रोत्साहनों पर है जिससे अंततः निवेशकों को भारी नुकसान होता है। और, आखिरकार जब निवेशक अपना पैसा गंवाते हैं तो सारा उद्योग संकट में फंस जाता है। मुझे लगता है कि हम सभी को यह सबक अपने भीतर बैठा लेना चाहिए।

कहा जाता है कि हमने एंट्री लोड पर रोक लगाकर डिस्ट्रीब्यूटरों का भुगतान रोक दिया। लेकिन यह गलतफहमी है। हमने इस मसले पर बहस के लिए पेश किए गए सुझाव पूरे छह महीने तक खुले रखे। उनमें साफ-साफ कहा गया था कि डिस्ट्रीब्यूचर को दोहरी भूमिका निभानी है। एक म्यूचुअल फंड के एजेंट की और दूसरी निवेशक के सलाहकार की। हमने इतना भर कहा था कि यह हक निवेशक का बनता है कि उसे एजेंट को सलाहकार सेवाओं के लिए कितना देना है। जो सलाहकार की सेवा ले रहा है उसे ही  तय करने दो कि क्या कमीशन देना है। निवेशक को आप मत बताओ कि उसे कितना कमीशन देना चाहिए।

उद्योग की शिकायत है कि वह शॉक एब्जॉर्वर बन गया है। लेकिन आप शॉक-एब्जॉर्वर इसलिए बन रहे हैं क्योंकि आप छोटी अवधि का धन ले रहे हैं। आपसे कहा किसने कि आप छोटी अवधि का धन हासिल करो? चूंकि आपने देखा कि पड़ोसी (दूसरा फंड हाउस) छोटी अवधि का धन ले रहा है जिससे उसकी आस्तियां (एयूएम) बढ़ गई हैं तो आपको लगा कि मैं भी क्यों न उसका मुकाबला करूं। आपके शॉक एब्जॉर्वर बन जाने की एकमात्र वजह यह है कि आपने छोटी अवधि के धन लेने का गलत चलन चला रखा है। अगर यह आपकी चिंता है तो आपको या तो खुद इसका समाधान निकालना होगा या आपको सेबी के पास आना होगा। दिक्कत यह है कि अभी म्यूचुअल फंड उद्योग जो दे रहा है और निवेशक वास्तव में जो चाहते हैं, उसमें अंतर है। लेकिन उद्योग इस समस्या की तह में पहुंचना ही नहीं चाहता।

इधर वित्तीय सेवाओ में फाइनेंशियल इनक्लूजन (वित्तीय समावेश) का शब्द काफी चल रहा है। वित्तीय समावेश एक आदर्श लक्ष्य है और हर कोई इसे हासिल करने की दिशा में काम कर रहा है। लेकिन हमें सबसे पहले इसका अर्थ समझना होगा। यह बैंकों और म्यूचुअल फंडों के लिए अलग-अलग है। जब हम बैंकों की बात करते हैं तो इसका मतलब है कि गरीब से गरीबतर लोगों को बैंकिंग सेवाओं के दायरे में शामिल करना। लेकिन म्यूचुअल फंड के साथ ऐसा नहीं है।

अगर महानगरों की हद से निकलकर बाहर जाना चाहते हैं तो आपको समझ लेना चाहिए कि आपके लक्षित कस्टमर कौन होंगे। पहुंच बढ़ाने की कोशिश में आपको उस व्यक्ति को पूंजी बाजार के उत्पाद नहीं बेचने चाहिए जिसकी जीवन भर की जमा पूंजी 50,000 रुपए है। कल, अगर बाजार गिर जाता है और वह व्यक्ति आपसे अपने पैसे मांगने के लिए आता है तो आप तो उससे कह देंगे कि मैं तो एक माध्यम हूं, पास थ्रू वेहिकल हूं। मैं तो आपको वही दे सकता हूं जितना एनएवी (शुद्ध आस्ति मूल्य) के हिसाब से बनता है। वह भलामानुष इस तरह का जोखिम नहीं ले सकता।

(23 जून 2010 को मुंबई में सीआईआई के म्यूचुअल सम्मेलन में सेबी  के तत्कालीन चेयरमैन सी बी भावे के संबोधन के संपादित अंश। उनका भाषण अंग्रेजी में था और कई-कई अखबारों में छपे उसके हिस्सों को जोड़कर यह लेख बनाया गया है। इसलिए थोड़ा ऊपर-नीचे, इधर-उधर हो सकता है। लेकिन भाषण की भावना से कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है)

1 Comment

  1. Excellent article… I hope they (MFs) are listening…

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