कल क्या होगा, इसे ठीक-ठीक न आप बता सकते हैं, न मैं और न ही कोई और। हम कल के बारे में इतना ही जानते हैं जितना आज तक की योजनाएं हमें बताती हैं। अगर योजनाएं दुरुस्त हैं, उनमें दम है तो कल सुनहरा हो सकता है। नहीं तो कल आज से भी बदतर हो सकता है। कंपनियों पर भी यह बात लागू होती है। देश में निजी क्षेत्र की दूसरी सबसे बड़ी शिपिंग कंपनी मरकेटर लाइंस इस समय ऐसे ही दौर से गुजर रही है। उसका वर्तमान फिलहाल अच्छा नहीं है। लेकिन कहते हैं कि निकट भविष्य में फल देनेवाली ठोस योजनाएं उसके पास हैं।
दस दिन पहले 28 मई को घोषित नतीजों के मुताबिक वित्त वर्ष 2010-11 की चौथी तिमाही में उसे 67.9 करोड़ रुपए का घाटा हुआ है। इससे ठीक पहले दिसंबर 2010 की तीसरी तिमाही में भी उसे 52.71 करोड़ रुपए का घाटा हुआ था। पूरे वित्त वर्ष 2010-11 में उसकी आय 695.43 करोड़ रुपए से 8.37 फीसदी घटकर 637.21 करोड़ रह गई है। उसे इस बार 98.04 करोड़ रुपए का घाटा हुआ है, जबकि पिछले वित्त वर्ष 2009-10 में उसने 6.40 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया था। हालांकि कंपनी ने कंसोलिटेड या समेकित नतीजों के आधार पर 2806.90 करोड़ रुपए की आय पर 46.85 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ दिखाया है।
ब्रोकिंग हाउस आईसीआईसीआई सिक्यूरिटीज का कहना है कि मरकेटर लाइंस को चौथी तिमाही में हुए 67.9 करोड़ रुपए के घाटे में से 42 करोड़ रुपए का नुकसान उसे जैक-अप रिग की बिक्री पर उठाना पड़ा है। यह सामान्य नहीं, अपवाद का मामला है। इसे हटा दें तो उक्त तिमाही में कंपनी का घाटा 25.9 करोड़ रुपए पर आ जाता है। इस घाटे की भी खास वजह भाड़े की दरों में कमी और बंकर की लागत का बढ़ना है।
लेकिन आगे ऐसा नहीं होने जा रहा। कंपनी जहां कोयला ट्रेडिंग व खनन के बिजनेस को कसने जा रही है, वहीं फ्लोटिंग प्रोडक्शन व स्टोरेज का धंधा बढ़ाने वाली है। कंपनी ने इंडोनेशिया में एक और खदान खरीद ली है। इसके बाद इंडोनेशिया में उसकी कुल तीन खदानें हो गई हैं। अगले छह महीने के भीतर नई खदान से उत्पादन शुरू हो जाने की उम्मीद है। आईसीआईसीआई सिक्यूरिटीज का कहना है कि शिपिंग के धंधे में तात्कालिक दबाव के बावजूद मरकेटर अपने दूसरे धंधों से अच्छी कमाई की स्थिति में है। फिर, उसका ऋण-इक्विटी अनुपात भी 1.18 के ठीकठाक स्तर पर है। ब्रोकर फर्म का आकलन है कि कंपनी अगले दो सालों में कोयला ट्रेडिंग और खनन के धंधे से अच्छी कमाई करेगी।
अगर मरकेटर लाइंस के सारे धंधे को मिलाकर समेकित नतीजों को आधार बनाएं तब भी उसका अद्यतन सालाना ईपीएस (प्रति शेयर शुद्ध लाभ) 1.97 रुपए निकलता है। उसका शेयर कल, 6 जून 2011 को बीएसई (कोड – 526235) में 41.55 रुपए और एनएसई (कोड – MLL) में 41.65 रुपए पर बंद हुआ है। इस तरह अभी समेकित ईपीएस को मानने पर भी वह 21.14 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। आईसीआईसीआई सिक्यूरिटीज का कहना है कि चिंता की कोई बात नहीं क्योंकि कंपनी का ईपीएस चालू वित्त वर्ष 2011-12 में 4.2 रुपए और इसके अगले साल 2012-13 में 10.5 रुपए रहने का अनुमान है।
इस अनुमान के मद्देनजर मरकेटर लाइंस का शेयर अभी 2011-12 के ईपीएस से 9.92 गुने और 2012-13 के ईपीएस से मात्र 3.97 गुने यानी पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। अभी शेयर की बुक वैल्यू 40.85 रुपए है। आईसीआईसीआई सिक्यूरिटीज का कहना है कि 2012-13 में कंपनी की प्रति शेयर बुक वैल्यू 103.3 रुपए हो जाएगी। अगर इसका आधा भी किया जाए तो शेयर का भाव 52 रुपए निकलता है। इसी गणना के आधार पर ब्रोकर फर्म का कहना कि इस शेयर में 52 रुपए के लक्ष्य यानी, 25 फीसदी से ज्यादा रिटर्न की उम्मीद के साथ निवेश कर देना चाहिए।
बता दें कि कंपनी की कुल इक्विटी 24.49 करोड़ रुपए है जो एक रुपए अंकित मूल्य के शेयरों में विभाजित है। इसका 59.78 फीसदी हिस्सा पब्लिक के पास है और बाकी 40.22 फीसदी हिस्सा प्रवर्तकों के पास है। प्रवर्तकों ने अपने हिस्से का 44.39 फीसदी यानी कंपनी की कुल इक्विटी का 17.85 फीसदी हिस्सा गिरवी रखा हुआ है। पब्लिक के हिस्से में से एफआईआई के पास 17.96 फीसदी और डीआईआई (घरेलू निवेशक संस्थाओं) के पास 4.13 फीसदी शेयर हैं।
एफआईआई व डीआईआई दोनों ने ही पिछली तिमाही में कंपनी में अपना निवेश घटा दिया है। फिर भी आईसीआईसीआई सिक्यूरिटीज जैसी नामी ब्रोकरेज फर्म मरकेटर लाइंस को खरीदने की सलाह क्यों दे रही है? वह भी भावी योजनाओं के दम पर अनुमानित लाभ की गणना से 25 फीसदी रिटर्न का सब्जबाग दिखाकर? बहुत सीधी-सी बात है कि उसका धंधा यही है। हो सकता है कि खुद उसके या उसके बड़े ग्राहकों के पास मरकेटर के शेयर हैं जिन्हें वह बिकवाना चाहती है तो रिटेल निवेशकों को खरीदने का लालच दिखा रही है। वह तो ब्रोकर है। खरीदने और बेचनेवाले, दोनों पक्षों से उसे ब्रोकरेज मिलना है।
मेरा कहना है कि जिस कंपनी का इक्विटी पर रिटर्न मात्र 3.05 फीसदी हो, जिसके प्रवर्तकों ने कंपनी के 17.85 फीसदी शेयर गिरवी रखें हों, जिस कंपनी का शुद्ध लाभ पिछले तीन सालों में 41.69 फीसदी की सालाना चक्रवृद्धि दर से घटा हो, उसमें कोई कितनी भी चमक दिखाए, उसे दूर से नमस्कार कर देना चाहिए। अरे! अगर शिपिंग में ही निवेश करना है तो शिपिंग कॉरपोरेशन, जीई शिपिंग, अबन ऑफशोर और ग्रेट ऑफशोर इससे कई गुना बेहतर कंपनियां हैं। जीई शिपिंग देश में निजी क्षेत्र की सबसे बड़ी शिपिंग कंपनी है।
अंत में शुरु की बात का उपसंहार। कभी भी भविष्यवक्ताओं और ज्योतिषियों के चक्कर में न पड़ें क्योंकि वे आपके दिमाग में छाई अनिश्चितता को भुनाकर ही अपनी रोजीरोटी चलाते हैं। इनसे भली तो बीमा कंपनियां हैं जो अनिश्चितता से निपटने का धंधा करती हैं, लेकिन वे एक पर आई आफत की भरपाई औरों पर आफत न आने के फायदे से कर देती हैं।