आंच आई रिजर्व बैंक की स्वायत्तता पर

शेयर बाज़ार वित्तीय जगत का एक छोटा-सा हिस्सा है। किसी देश के वित्तीय जगत के केंद्र में होता है उसका केंद्रीय बैंक। नोटों के प्रबंधन से लेकर मौद्रिक नीति तक का निर्धारण वही करता है। केंद्रीय बैंक देश के वित्तीय बाज़ार के लिए हृदय का काम करता है। बैंक उसके लिए धमनी तंत्र जैसे हैं। देश की मुद्रा अंतरराष्ट्रीय बाजार में महंगी होगी या सस्ती, बाज़ार की इस क्रिया पर भी अंकुश लगाने का अहम काम केंद्रीय बैंक ही करता है। सरकारें आती-जाती रहती हैं। लेकिन केंद्रीय बैंक देश में हमेशा-हमेशा के लिए होता है। इसलिए हमेशा उसकी स्वायत्तता कायम रखी जाती है। उस पर सरकार के जरिए देशवासियों का ही मालिकाना होता है। लेकिन अमूमन उसके कामकाज़ में सरकार को दखल की इजाजत नहीं होती। अपने देश का केंद्रीय बैंक है – भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई), जिसका गठन ब्रिटिश राज में 1 अप्रैल 1935 को हुआ था। 1 अप्रैल 2010 को 75 साल पूरा करने पर रिजर्व बैंक ने अपनी प्लैनियम जुबली मनाई तो उसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह तक शामिल हुए थे और उन्होंने रिजर्व बैंक की स्वायत्तता पर कभी कोई आंच न आने का वचन दिया था। लेकिन छह साल सात महीने बाद नई सरकार ने इस वचन के परखच्चे उड़ा दिए। अब सोमवार का व्योम…

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