अमेरिका में ट्रम्प की जीत पर अपना शेयर बाज़ार ऐसा उछला जैसे इससे अर्थव्यवस्था में सुरखाब के पर लग गए हों। लेकिन अगले ही दिन सारा खुमार उतर गया। आईटी शेयरों की चमक भी फीकी पड़ गई। दुनिया जानती है कि ट्रम्प कुछ देता है तो उसके बदले में कहीं ज्यादा वसूल लेता है। यह भी कड़वी हकीकत है कि ट्रम्प के जीत से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक भारत में वापसी नहीं करने जा रहे। वे तो अर्थव्यवस्थाऔरऔर भी

नामी ब्रोकरेज कंपनी एडेलवाइस सिक्यूरिटीज़ से नुवामा वेल्थ बनी निवेश फर्म ने हाल ही एक रिसर्च रिपोर्ट में इस तथ्य की पुष्टि की है कि भारतीय अर्थव्यवस्था मांग के सुस्त पड़ते जाने के बड़े दौर से गुजर रही है। इसके चलते कॉरपोरेट क्षेत्र के मुनाफे के बढ़ने की दर शीर्ष पर पहुंचने के बाद थमने लगी है और तमाम कोशिशों के बावजूद उसके लाभ मार्जिन घटते जा रहे हैं। नुवामा कोई बाहर की नहीं, बल्कि कॉरपोरेट क्षेत्रऔरऔर भी

मोदी सरकार के राज में जीडीपी से लेकर मुद्रास्फीति और औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) तक का आंकड़ा एकदम अविश्सनीय हो गया है। समझदार लोग इन पर भरोसा नहीं करते। देश के आम आदमी की हालत खराब है, इस प्रत्यक्ष तथ्य को किसी प्रमाण की ज़रूरत नहीं। दिक्कत यह है कि जिस कॉरपोरेट क्षेत्र के कंधे पर सवार होकर यह सरकार भारत को विकसित देश बनाने का सपना बेच रही है, उसके कंधे भी अब दुखने लगे हैं।औरऔर भी

सितंबर में जीएसटी संग्रह 40 महीनों की न्यूनतम दर 6.5% से बढ़कर ₹1.73 लाख करोड़ पर पहुंचा तो सरकार बड़ी मायूस थी। अब अक्टूबर में 8.9% बढ़कर ₹1.87 लाख करोड़ हो गया तो बड़ी गदगद है। यह जुलाई 2017 में जीएसटी के लागू होने के बाद की दूसरी सबसे बड़ी वसूली है। अप्रैल 2014 में सबसे ज्यादा ₹2.10 लाख करोड़ का जीएसटी जमा हुआ था। लेकिन ज्यादा जीएसटी पर चहकना सरकार की उसी तरह की क्रूरता हैऔरऔर भी