पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी के निर्देश के बावजूद अब भी वितरक/ब्रोकर ग्राहकों के कागजात म्यूचुअल फंड को नहीं दे रहे हैं। सेबी ने बीते दिसंबर माह से ही यह नियम बना दिया हैं कि म्यूचुअल फंड निवेशक को किसी दूसरे ब्रोकर या मध्यस्थ की सेवा लेने के लिए पुराने ब्रोकर से अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) लेने की जरूरत नहीं है। लेकिन ब्रोकर अब भी किसी न किसी बहाने ग्राहक के निवेश संबंधी दस्तावेज देने में आनाकानी करऔरऔर भी

पूंजी बाजार नियामक संस्था भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने जस्टिस डीपी वाधवा समिति की रिपोर्ट पर अमल के लिए एडमिनिस्ट्रेटर नियुक्त कर दिया है। रिटायर्ड मुख्य आयकर आयुक्त और सेबी के पूर्व कार्यकारी निदेशक विजय रंजन को यह जिम्मा सौंपा गया है। यह मामला साल 2003 से 2005 के बीच आए 21 आईपीओ (प्रारंभिक सार्वजनिक ऑफर) का है, जिसमें हजारों बेनामी डीमैट खाते खुलवाकर रिटेल निवेशकों के हिस्से के शेयर हासिल कर लिए गए थेऔरऔर भी

इस साल अभी तक स्थिति यह रही है कि बैंक हर दिन औसतन 1.09 लाख करोड़ रुपए रिजर्व बैंक के पास रिवर्स रेपो की सुविधा के तहत जमा कराते रहे हैं जिस पर उन्हें महज 3.25 फीसदी सालाना की दर से ब्याज मिलता है। बैंकिंग सिस्टम में इस राशि को अतिरिक्त तरलता माना जाता है। यह वह राशि है जो आम लोगों से लेकर औद्योगिक क्षेत्र को उधार देने और विभिन्न माध्यमों में निवेश करने के बादऔरऔर भी

देश के बैक सड़क से लेकर बिजली जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र को ऋण देते-देते परेशान हो गए हैं। इस साल उन्होंने कुल मिलाकर उद्योग क्षेत्र को 14 फीसदी ही ज्यादा कर्ज दिया है जिसके चलते रिजर्व बैंक को कर्ज में इस वृद्धि का लक्ष्य 18 से घटाकर 16 फीसदी करना पड़ा है। लेकिन इस दौरान इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र को बैंकों से मिले कर्ज में 46 फीसदी की शानदार वृद्धि हुई है। यह कहना है खुद रिजर्व बैंक के डिप्टीऔरऔर भी

खाद्य पदार्थों की बढ़ती महंगाई पर हायतौबा मची हुई है। कई विद्वान कहते फिर रहे हैं कि सरकार को आयात के जरिए इस महंगाई पर काबू पाना चाहिए। लेकिन भारतीय रिजर्व बैंक से टो-टूक शब्दों में कह दिया है कि ऐसा करना संभव नहीं है क्योंकि दूसरे देशों में खाद्य पदार्थों की कीमतें हम से ज्यादा बढ़ी हैं। आज पेश की गई मौदिक्र नीति की तीसरी तिमाही की समीक्षा में रिजर्व बैंक के गवर्नर डॉ. डी सुब्बारावऔरऔर भी

मौद्रिक नीति की तीसरी तिमाही की समीक्षा के पेश होने में अब बस एकाध दिन का समय बचा है और बाजार में भयंकर ऊहापोह है कि इस बार क्या होनेवाला है। इसका संकेत इस बात से मिलता है कि बाजार के बेंचमार्क दस साल की परिपक्वता वाले सरकारी बांडों का भाव बुधवार को एक समय गिरकर 91.37 रुपए (अंकित मूल्य 100 रुपए) और यील्ड की दर बढक़र 7.60 फीसदी पर चली गई, जबकि सोमवार को इन बांडोंऔरऔर भी

आम निवेशकों से करोड़ों की रकम जुटाकर लापता हो चुकी 121 कंपनियों की सूची तो कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय ने बड़ी प्रमुखता से अपनी वेबसाइट पर पेश कर रखी है। इसमें बताया गया है कि कैसे कोलकाता की वेस्टर्न इंडिया इंडस्ट्रीज निवेशकों से 232.60 करोड़ जुटाकर लापता हो चुकी है। लेकिन इस बात पर न तो मंत्रालय और न ही पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी का कोई ध्यान है कि देश के दो प्रमुख स्टॉक एक्सचेंजों बीएसईऔरऔर भी

कुल विदेशी निवेश में एफडीआई का हिस्सा 30.04 फीसदी है तो पोर्टफोलियो निवेश है 20.45 फीसदी। देश में दीर्घकालिक निवेश के लिए आ रही है ज्यादा पूंजी और घट रहा है हॉट मनी का हिस्सा। देश में हो रहे कुल विदेशी निवेश में प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) का हिस्सा पिछले एक साल से बढ़ रहा है और अब यह पोर्टफोलियो निवेश से ज्यादा हो गया है। भारत के अंतरराष्ट्रीय निवेश पर जारी रिजर्व बैंक की ताजा रिपोर्ट केऔरऔर भी

पिछले मार्च से इस मार्च के बीच अमेरिकी सरकार के बांडों में भारत का निवेश तीन गुना से ज्यादा हो गया है। देश की तरफ से तकरीबन 99 फीसदी निवेश भारतीय रिजर्व बैंक अपने विदेशी मुद्रा खजाने से करता है। वित्तीय संस्थाओं और कॉरपोरेट क्षेत्र की तरफ से किया गया निवेश एक फीसदी से भी कम रहता है। यूएस ट्रेजरी विभाग की तरफ से जारी ताजा आंकड़ों के मुताबिक मार्च 2008 तक अमेरिकी सरकार के बांडों मेंऔरऔर भी

मंदी से मुक्त माना जानेवाला माइक्रो फाइनेंस क्षेत्र भी अब आर्थिक सुस्ती का शिकार हो गया है। इस क्षेत्र को बैंकों से मिलनेवाला धन कुछ साल पहले तक मिल रहे धन का अब मामूली हिस्सा रह गया है। बैंक माइक्रो फाइनेंस संस्थाओं (एमएफआई) को बगैर बैलेंस शीट देखे कर्ज देने से मना कर रहे हैं। इससे छोटी एमएफआई के लिए भारी मुसीबत पैदा हो गई है क्योंकि वे आमतौर पर बैलेंस शीट नहीं बनाती। केवल बड़ी एमएफआईऔरऔर भी