विदेशी निवेश की घोषणाएं क्यों धराशाई

देश में होनेवाले विदेशी निवेश की आशावादी घोषणाओं में कोई कमी नही है। लेकिन वास्तविक निवेश छिटकता जा रहा है। मसलन, जुलाई 2023 में ताइवान के फॉक्सकॉन ग्रुप ने वेदांता समूह के साथ लगाए जानेवाले 19.5 अरब डॉलर के सेमी-कंडक्टर संयुक्त उद्यम से हाथ पीछे खींच लिया। अभी पिछले ही महीने फरवरी में सोनी ने ज़ी एंटरटेनमेंट के साथ विलय का 10 अरब डॉलर का करार तोड़ दिया। वित्त वर्ष 2023-24 की पहली छमाही में देश में आया सकल एफडीआई जीडीपी का मात्र 1% रह गया, जबकि शुद्ध एफडीआई तो गिरकर 0.6% पर आ गया। यह स्तर इससे पहले वित्त वर्ष 2005-06 में देखा गया था। मतलब मोदी सरकार की मेक-इन इंडिया और प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव (पीएलआई) जैसी सारी स्कीमें फेल हो चुकी हैं। जाने-माने वैश्विक निवेश बैंकर जे.पी. मॉर्गन ने अपनी हाल की एक रिपोर्ट में कहा है कि भारत में पिछले कुछ साल से घट रहा एफडीआई बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। उसका कहना है कि यह चिंता की बात इसलिए है क्योंकि भारत को अपने युवाओं के वास्ते मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में रोज़गार पैदा करने के लिए एफडीआई बेहद ज़रूरी है। युवाओं को कायदे का रोज़गार नहीं मिला तो भारत का सारा का सारा डेमोग्राफिक डिविडेंड बेकार चला जाएगा। अब बुधवार की बुद्धि…

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