आज़ादी के 78 साल बाद भी भारत कृषिप्रधान देश है तो यह गर्व नहीं, शर्म की बात है। यह भी दुखी होने की बात है कि रोज़गार के लिए कृषि पर निर्भरता घटने के बजाय बढ़ती जा रही है। 2017-18 में रोज़गार में कृषि का योगदान 44.1% था। यह 2023-24 में 46.1% हो गया। इसके बाद का डेटा सरकार के पास नहीं है। अमेरिका की केवल 1.5% श्रम-शक्ति कृषि में लगी है और वो पूरे देश की खाद्य ज़रूरत को पूरा करने के बाद निर्यात भी करती है। अपने यहां ज़रूरत उद्योगों या मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र को बढ़ाने की है ताकि लोग कृषि से निकल उद्योग-धंधों में रोज़गार पा सकें। लेकिन सरकार की नीतियों के चलते ऐसा नहीं हो पा रहा। मोदी सरकार को लगता है कि किसानों को साल भर में ₹6000 की सम्मान निधि देना कृषि समस्या का समाधान है। वहीं, विपक्ष को लगता है कि किसानों को उनकी उपज के न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी दे दी जाए तो समस्या सुलझ जाएगी। दोनों ही समाधान खेती-किसानी की स्थिति को जस का तस रखेंगे। यह स्थिति पूरी तरह तभी बदल सकती है जबकि देश में मैन्यूफैक्चरिंग को जमकर बढ़ाया जाए। कंस्ट्रक्शन या इंफ्रास्ट्रक्चर से फौरी समाधान निकलता है, स्थाई नहीं। अब शुक्रवार का अभ्यास…
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