चल रही है इनफोसिस में एक तरंग

साल भर में करीब 25,500 करोड़ रुपए का धंधा। करीब डेढ़ लाख लोगों को सीधा रोजगार। अभी सितंबर तिमाही में करीब 7500 करोड़ रुपए की आय पर 1822 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ। मौजूदा बाजार पूंजीकरण 1.65 लाख करोड़ रुपए। इनफोसिस है तो देश की दूसरी सबसे बड़ी सॉफ्टवेयर निर्यातक कंपनी। उसका नंबर टाटा समूह की कंपनी टीसीएस के बाद आता है जिसकी सालाना आय करीब 30,000 करोड़ और मौजूदा बाजार पूंजीकरण 2.34 लाख करोड़ रुपए है। लेकिन इनफोसिस का नाम बड़ा है। उसकी छवि बड़ी है। कारण, एक औसत मध्यवर्गीय व्यक्ति ने अपने ही इंजीनियर मित्रों के साथ मिलकर इसे खड़ा किया है। वह भारत की विकासगाथा में आम आदमी के शिरकत की कहानी बन गई है।

इसलिए इनफोसिस किसी चर्चा की मोहताज नहीं है। वह हर म्यूचुअल फंड, बीमा कंपनी, एफआईआई या एचएनआई के पोर्टफोलियो में शामिल है। सवाल यह है कि आपके पोर्टफोलियो में है कि नहीं? इनफोसिस ने पिछले महीने की 20 तारीख को घोषित किया कि वह ऑस्ट्रेलिया के पोर्टलैंड ग्रुप को पूरा का पूरा खरीदने जा रही है। यूं तो इनफोसिस के आकार को देखते हुए यह कोई बड़ा अधिग्रहण नहीं है। लेकिन उसके बाद से उसका शेयर लगातार बढ़ता जा रहा है।

इस करार की घोषणा के दिन 20 दिसंबर 2011 को उसका शेयर 2667.35 रुपए पर था। कल 3 जनवरी 2012 को उसका पांच रुपए अंकित मूल्य का शेयर बीएसई (कोड – 500209) में 2864.60 रुपए और एनएसई (कोड – INFY) में 2864.30 रुपए पर बंद हुआ है। दस कारोबारी सत्रों में 7.4 फीसदी की बढ़त। जानकारों की मानें तो यह अगले कुछ दिनों में करीब 6 फीसदी और बढ़कर 3040 रुपए पर पहुंच सकता है।

असल में एचडीएफसी सिक्यूरिटीज ने यह गणना कंपनी के भावी लाभार्जन के आधार पर की है। इस समय इनफोसिस का ठीक पिछले बारह महीनों (टीटीएम) का ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 119.24 रुपए है और उसका शेयर इससे 24.02 गुना भाव या पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। एचडीएफसी सिक्यूरिटीज का आकलन है कि कंपनी का ईपीएस चालू वित्त वर्ष 2011-12 की समाप्ति पर 144.7 रुपए और इसके अगले वित्त वर्ष 2012-13 की समाप्ति पर 169 रुपए रहेगा। उसका शेयर इस साल के अनुमानित ईपीएस से 19.8 और अगले साल के अनुमानित ईपीएस से 16.95 गुना भाव पर ट्रेड हो रहा है। ब्रोकरेज फर्म का कहना है कि अगर 2012-13 के अग्रिम ईपीएस को देखते हुए इनफोसिस का शेयर 18 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हुआ तो वह 3042 रुपए पर पहुंच सकता है।

यह गणनाएं अपनी जगह हैं। अभी एक तो यह है कि पोर्टलैंड ग्रुप के अधिग्रहण का काम इस हफ्ते या अगले हफ्ते तक पूरा हो जाएगा। यह सौदा मात्र 3.70 करोड़ ऑस्ट्रेलियाई डॉलर (करीब 204 करोड़ रुपए) का है। इसलिए इससे इनफोसिस की जेब से ज्यादा कुछ नहीं जाएगा। हां, उसे अपने धंधे में 40 एकदम नए ग्राहक मिल जाएंगे और 1999 में बने पोर्टलैंड ग्रुप का लाभ मार्जिन भी काफी बेहतर रहा है। दूसरे, इनफोसिस अगले हफ्ते गुरुवार, 12 जनवरी को तीसरी तिमाही के नतीजे घोषित करने जा रही है। 30 सितंबर से 31 दिसंबर तक रुपया डॉलर के सापेक्ष करीब 7.5 फीसदी कमजोर हो चुका है। कंपनी की लगभग तीन-चौथाई आय विदेश से आती है। इसलिए रुपए के कमजोर होने से ही उसकी आय में 6 फीसदी का अतिरिक्त इजाफा हो जाएगा।

लेकिन मुद्रा का इस तरह चढ़ना-उतरना इनफोसिस जैसी कंपनियों के लिए जोखिम का भी काम करता है। ऊपर से अमेरिका में संरक्षणवाद बढ़ता गया, अभी जिस तरह वह कम समय के वीसा देने में अड़चनें डाल रहा है, उससे भी कंपनी के धंधे पर असर पड़ सकता है। फिर भी, इन सारी चीजों के बावजूद इनफोसिस के साथ इतने सकारात्मक पहलू हैं कि उसे लंबे समय के लिए ले ही लेना चाहिए। हमने अगस्त में भी इसे खरीदने की सिफारिश की थी। तब यह अपने न्यूनतम स्तर 2200 रुपए के आसपास चल रहा था। खैर, अब भी इसे खरीदने का मौका है। हो सकता है कि अगले हफ्ते बुधवार तक ही 6 फीसदी का फायदा करा दे।

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