सरकारी नीतियों के मारे किसान बेचारे!

क्या भारत जैसे कृषिप्रधान देश का विकास किसानों के हितों को अनदेखा करके किया जा सकता है? जवाब है कतई नहीं। लेकिन मोदी सरकार ने तो लगता है कि कॉरपोरेट हितों की रक्षा और किसान-हितों की उपेक्षा को अपना शगल बना लिया है। कॉरपोरेट क्षेत्र चाहता है कि सरकार की नीति में निरतंरता व स्थायित्व बना रहे। यकीनन किसान और कृषि उद्यमी भी यही चाहते हैं। लेकिन मोदी सरकार उनकी एक नहीं सुनती। केंद्रीय कृषि मंत्री ने बोला कि भारत सारी दुनिया को भोजन देने को तैयार है और अनाज के लिए नए बाज़ार खोजे जाएंगे। लेकिन कुछ ही दिन बाद मई 2022 में सारा गेहूं निर्यात बैन कर दिया गया। नवंबर 2023 में तय किया कि 800 डॉलर प्रति टन से कम भाव पर प्याज निर्यात नहीं किया जा सकता। फिर अगले ही महीने उस पर पूरी रोक लगा दी गई। अभी इसी महीने के शुरू में लोकसभा चुनाव से कुछ दिन पहले महाराष्ट्र के मुख्य प्याज़ उत्पादक बेल्ट में यह बैन हटा लिया गया। लेकिन फिर नियम बना कि प्याज का न्यूनतम निर्यात मूल्य 550 डॉलर प्रति टन होगा और इसके ऊपर 40% (220 डॉलर) निर्यात शुल्क देना होगा। कॉरपोरेट क्षेत्र के साथ ऐसा नरम-गरम हुआ होता तो कोहराम मच जाता। लेकिन सरकार किसानों के साथ जब जो चाहे, कर सकती है क्योंकि उसे पता है कि किसानों को दबाया और तोड़ा जा सकता है। अब गुरुवार की दशा-दिशा…

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