औद्योगिक विकास दर की सुस्ती मिटी, अक्टूबर में फिर दहाई में

दो महीने तक लस्टम-पस्टम चलने के बाद देश की औद्योगिक विकास दर फिर दहाई अंक में आ गई है। औदियोगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) से नापी जानेवाली यह दर अक्टूबर में 10.8 फीसदी रही है, जबकि अगस्त में यह 6.91 फीसदी और सितंबर में मात्र 4.4 फीसदी ही थी। योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोटेंक सिंह आहूलवालिया अक्टूबर के आंकड़ों से इतने उत्साहित हैं कि कहने लगे हैं कि यह (आईआईपी की विकास दर) पूरे वित्त वर्ष 2010-11 में पूरी 10 फीसदी नहीं तो उसके एकदम करीब पहुंच ही जाएगी।

इस साल जुलाई में औद्योगिक उत्पादन की दर 15.08 फीसदी दर्ज की गई थी। लेकिन उसके बाद लगातार दो महीनों में गिरती रही तो एक तरह का निराशाजनक माहौल बनने लगा था। पर अब फिर हर तरफ आशावाद छा गया है। हाल में ही आए दूसरी तिमाही के 8.9 फीसदी आर्थिक विकास दर के आंकड़े भी उत्साह बढ़ानेवाले रहे हैं। वैसे, मोंटेक का कहना है कि हमें देखना पड़ेगा कि साल के बाकी बचे महीनों में ऐसी औद्योगिक विकास दर कायम रहती है या नहीं क्योंकि पिछले साल इसी दौरान औद्योगिक विकास दर बढ़ गई थी। अब उसे आधार बनाकर वृद्धि दर निकाली जानी है।

बता दें कि औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में सबसे ज्यादा 79.36 फीसदी योगदान मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र का है। उसके बाद खनन क्षेत्र का 10.47 फीसदी और बिजली क्षेत्र का 10.17 फीसदी योगदान है। पिछले साल के अक्टूबर की तुलना में इस अक्टूबर में मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र का उत्पादन 11.3 फीसदी, बिजली क्षेत्र का 8.8 फीसदी और खनन क्षेत्र का उत्पादन 6.5 फीसदी बढ़ा है।

मैन्यूफैक्चरिंग में भी सबसे ज्यादा 31 फीसदी वृद्धि कंज्यूमर ड्यूरेबल उद्योग में हुई है जिसमें खास हैं – पैसेंजर कार, मोटरसाइकिल, स्कूटर व मोपेड, अलार्म घड़ियां और टेलिविजन। उसके बाद कैपिटल गुड्स या मशीनरी उत्पादन में वृद्धि दर 22 फीसदी दर्ज की गई है जिसमें खास हैं – ऑफ शोर प्लेटफॉर्म, शिप बिल्डिंग व रिपेयर, इलेक्ट्रिक कंट्रोल पैनेल, प्रयोगशाला व वैज्ञानिक उपकरण, इलेक्ट्रिक जनरलेटर व टर्बाइन। इन उद्योगों को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि औद्योगिक विकास के उत्साहवर्धक आंकड़े के बीच हम कहां फिट बैठते हैं।

आर्थिक नीतियों के लिहाज से इन आंकड़ों की काफी अहमियत अगले हफ्ते गुरुवार, 16 दिसंबर को पेश की जानेवाली रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति की तीसरी त्रैमासिक समीक्षा के लिए हो सकती है क्योंकि उसे तय करना है कि आर्थिक विकास को तात्कालिक प्राथमिकता दी जाए या मुद्रास्फीति पर नियंत्रण को। हालांकि यूनियन बैंक मुख्य अर्थशास्त्री नितेश रंजन का कहना है कि रिजर्व बैंक पहले से आईआईपी में इन तरह के उछाल का भान था, इसलिए ये आंकड़े उसके लिए चौंकानेवाले नहीं हैं।

एक बात तो तय है कि रिजर्व बैंक ऐसा कोई कदम नहीं उठाएगा जिससे सिस्टम में तरलता कम हो। इसलिए सीआरआर या एसएलआर में किसी वृद्धि की गुंजाइश नहीं है, बल्कि इन्हें क्रमशः 6 फीसदी और 25 फीसदी के स्तर से कम किया जा सकता है। दूसरी तरफ, रिजर्व बैंक इस साल मार्च के बाद से अब तक रेपो दर को 1.50 फीसदी बढ़ाकर 6.25 फीसदी और रिवर्स रेपो दर को 2.00 फीसदी बढ़ाकर 5.25 फीसदी कर चुका है। इस तरह ब्याज दरें बढ़ाकर उसने मुद्रास्फीति पर लगाम लगाने की कोशिश की है। अर्थशास्त्री मानते हैं कि तीसरी त्रैमासिक समीक्षा में रिजर्व बैंक ब्याज दरों से कोई छेड़छाड़ नहीं करेगा।

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