हमारे यहां अभी तक का चलन यही है कि बीमा खरीदा नहीं जाता बल्कि यह बेचा जाता है। लिहाजा बीमा एजेंट जहां भावी ग्राहकों को आधी-अधूरी जानकारियां देता है वहीं कॉरपोरेट एजेंट से भी ग्राहकों को काफी शिकायतें हैं। बीमा पॉलिसी की ऑनलाइन खरीदारी का रास्ता कांटों से भरा हुआ है तो टेलीसेल्स यानी टेलीफोन के जरिए बीमा उत्पादों की बिक्री की प्रक्रिया से ग्राहक समुदाय नाखुश है।
शिकायतें बहुत: एक अनुमान के अनुसार भारतीय बीमा उद्योग में इस समय लगभग 40 लाख एजेंट और 15 लाख फाइनेंशियल प्लानर हैं जो इंश्योरेंस प्रोडक्ट की बिक्री व विपणन करते हैं। इनकी संख्या में हर साल घट-बढ़ होती रहती है। यहां पर ध्यान रखा जाए कि चाहे एजेंट व कॉरपोरेट एजेंट हो या टेलीसेल्स वाले, इन सबकी कार्यप्रणाली पर कई बार उंगलिंया उठाई जा चुकी है।
सुधार की प्रक्रिया: पर अब बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीए) ने एजेंट, कॉरपोरेट एजेंट, ऑनलाइन व टेलीसेल्स समेत बीमा पॉलिसियों के विपणन व बिक्री के सभी माध्यमों को सुधारने का बीड़ा उठा लिया है। सबसे पहले एजेंटों की उचित ट्रेनिंग पर जोर दिया गया ताकि वे भावी ग्राहकों को हितकारी जानकारी और पॉलिसीधारकों को बेहतर ऑफ्टर-सेल्स सेवा दें।
तीन नैतिक दायित्व: जानकारों के अनुसार बीमा एजेंटों को तीन नैतिक दायित्वों का पालन जरूर करना चाहिए। भावी ग्राहक की आवश्यकता के अनुसार योजना को बेचना यानी उसे सुरक्षा संबंधी लाभ बेचिए, पॉलिसी नहीं। अपने बिजनेस व अपने प्रतिस्पर्धी के सभी कदमों का पूरा-पूरा ज्ञान रखना। बिक्री बाद सेवा के लिए रोजाना निश्चित समय देना। पर ऐसा नहीं होता।
4261 कॉरपोरेट एजेंटों के लाइसेंस निरस्त: आप अगली बार किसी कॉरपोरेट एजेंट से बीमा पॉलिसी खरीदते समय उसका लाइसेंस चेक करना नहीं भूलिए कि वह पॉलिसी बेचने के लिए अधिकृत है या नहीं? देश के कुल लगभग 7000 कार्पोरेट एजेंटों में से आईआरडीए ने 4261 कॉरपोरेट एजेंटों के लाइसेंस निरस्त कर दिए हैं, यानी ये 31 मार्च 2010 के बाद से बीमा प्रोडक्ट नहीं बेच सकते।
टेलीसेल्स पर खास ध्यान: दो साल पहले एक एक्सपर्ट पैनल ने कहा था कि बीमा उत्पादों की डिस्टेंस सेलिंग ज्यादा से ज्यादा लोगों तक बीमा पहुंचाने के लिए एक नया रास्ता है। यह बात सही भी है क्योंकि देश में एक प्रकार से मोबाइल क्रांति सी चल गई है। अब तो थ्री-जी सेवाओं का रास्ता भी साफ हो रहा है। लिहाजा यदि टेलीसेल्स पर खास ध्यान दिया जाए तो इंश्योरेंस इंडस्ट्री की ट्रांजैक्शन लागत कम होगी व बीमा उत्पाद की पहुंच भी विस्तृत होगी।
मिस-सेलिंग इसमें भी: भारत में टेलीसेल्स के जरिए लाइफ व नॉन-लाइफ इंश्योरेंस प्रोडक्ट बेचने की इजाजत तो है और इसके जरिए कारोबार कम होता है। पर इसमें भी मिस-सेलिंग की संभावना है। टेली-मार्केटिंग कंपनियों के प्रतिनिधि भावी ग्राहक को फोन पर सही जानकारी नहीं देते। प्रोडक्ट कोई भी हो लाइफ अथवा नॉन-लाइफ इंश्योरेंस प्रोडक्ट, वे ग्राहक से कई जानकारियां छुपा कर उनसे हामी भरवाने के चक्कर में रहते हैं।
बीमा ग्राहकों का हित: टेलीफोन व इंटरनेट के जरिए आईआरडीए बीमा पॉलिसियों के विपणन व बिक्री पर लगाम कसने की तैयारी में है। टेलीफोन कॉल, ई-मेल, इंटरनेट, इंटरैक्टिव टेलीविजन-डीटीएच या डाक सेवा व अखबारों के जरिए बीमा योजनाओं की बिक्री के लिए जल्द ही दिशानिर्देश पेश किए जाएंगे। इसके जरिए बीमा धारकों के सभी प्रकार के हितों का ध्यान रखा जाएगा।
समुचित डिस्क्लोजर: बीमा, पेंशन या बचत व निवेश वाली अन्य योजनाओं के बारे में आईआरडीए का कहना है कि जहां भी निवेश से जुड़े रिस्क की संभावना हो वहां उसके बारे में पूरी जानकारी ग्राहकों को दी जानी चाहिए। वहीं गारंटी के मामले में गारंटी का नेचर यानी एनएवी गारंटी, पूंजी सुरक्षा व उसके महत्व के बारे में साफ रूप से बताया जाए। सारे डिस्क्लोजर एकदम सही होने चाहिए।
टेलीफोन कॉलर को ट्रेनिंग: आईआरडीए चाहता है कि हर टेलीफोन कॉलर ने उचित ट्रेनिंग हासिल की हो। बीमा कंपनियों व ब्रोकरों को टेलीफोन के जरिए बेची जाने वाली हरेक पॉलिसी के मुख्य फीचर्स की एक स्क्रिप्ट तैयार करनी होगी। आईआरडीए का कहना है कि टेलीफोल कॉलर को ग्राहक से पहले उसकी मर्जी पूछनी चाहिए कि वह फलां योजना के बारे में जानना चाहता है या नहीं। ग्राहक के हां करने पर ही बातचीत आगे बढ़ाई जाए। कॉलर को अपना परिचय व संपर्क करने का ध्येय पहले बताना होगा।
आईआरडीए ने यह भी कहा है कि बीमा कंपनियां टेलीमार्केटिंग की गुणवत्ता पर कड़ी नजर रखें और किसी भी प्रकार से ग्राहकों को बाध्य न किया जाए। जब ग्राहक पॉलिसी की खरीद के लिए तैयार हो जाए, तब आगे बात बढ़ाई जाए।
– राजेश विक्रांत (लेखक एक बीमा प्रोफेशनल हैं)
जानकारी परक आलेख के लिए आभार !!