यूं तो मौद्रिक नीति में रिजर्व बैंक ठीक-ठीक क्या उपाय करेगा, इसका सटीक अनुमान लगाना लगभग नामुमकिन होता है। लेकिन आज तो कमाल हो गया जब सूत्रों से मिले इशारे, बातचीत और विश्लेषण के आधार पर अर्थकाम की तरफ से पेश की गई खबर एकदम सही साबित हो गई। रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2010-11 की मौद्रिक नीति में रेपो, रिवर्स रेपो और नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) में 25 आधार अंकों या 0.25 फीसदी की वृद्धि कर दी है। रेपो व रिवर्स रेपो दर तत्काल प्रभाव से बढ़कर क्रमशः 5.25 फीसदी और 3.75 फीसदी हो गई है। अभी तक ये दरें क्रमशः 5 फीसदी और 3.5 फीसदी थीं। रेपो वह ब्याज दर है जिस पर रिजर्व बैंक सिस्टम में तरलता या लिक्विडिटी डालता है, जबकि रिवर्स रेपो वह ब्याज दर है जिस पर रिजर्व बैंक बैंकों के पास पड़ी अतिरिक्त तरलता को सोखता है।
आज वित्त वर्ष 2010-11 की मौद्रिक नीति पर रिजर्व बैंक के गवर्नर डी सुब्बाराव ने जारी बयान में कहा है कि सीआरआर की दर अब 5.75 फीसदी से बढ़ाकर 6 फीसदी कर दी गई है। सीआरआर में यह वृद्धि 24 अप्रैल को शुरू हो रहे पखवाड़े से लागू होगी। सीआरआर वह अनुपात है जिसमें बैंकों को अपनी जमा का हिस्सा रिजर्व बैंक के पास अनिवार्य रूप से नकद के रूप में रखना पड़ता है। इस पर रिजर्व बैंक कोई ब्याज बैंकों को नहीं देता। इसलिए बैंक इसकी लागत अन्य ग्राहकों से ली जानेवाली ब्याज में हल्की-सी बढ़त से निकालते हैं। सीआरआर में इस वृद्धि से रिजर्व बैंक सिस्टम से 12,500 करोड़ रुपए की अतिरिक्त तरलता या लिक्विडिटी निकाल लेगा। बैंकों के पास इस समय औसत अतिरिक्त तरलता 40,000 करोड़ रुपए के आसपास चल रही है जिसका पता उनके द्वारा हर दिन चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के तहत रिजर्व बैंक के पास रिवर्स रेपो में जमा कराई गई रकम से चलता है।
रिजर्व बैंक के लिए बढ़ रही मुद्रास्फीति (थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित) चिंता का मसला है जो मार्च 2010 में 9.9 फीसदी पर पहुंच गई है। लेकिन उसका कहना है कि आगे इसमें कमी लाई जाएगी। इसी सोच के तहत मौद्रिक नीति में उसने मार्च 2011 के लिए मुद्रास्फीति का अनुमान 5.5 फीसदी का लगाया है। मुद्रा प्रसार को दर्शाने वाले मुद्रा आपूर्ति (एम-3) के बारे में रिजर्व बैंक ने 2010-11 के अंत मार्च 2011 में 17 फीसदी का अनुमान रखा है। 2009-10 में रिजर्व बैंक ने एम-3 के लिए अंतिम अनुमान 16.5 फीसदी का लगाया था, जो हकीकत में इससे थोड़ा-सा ज्यादा 16.8 फीसदी है। इसकी वजह रिजर्व बैंक ने यह बताई है कि बैंकों के गैर-खाद्य ऋण या उद्योग व उपभोक्ता को दिए गए ऋण में 16.9 फीसदी की वृद्धि हुई है, जबकि अनुमान 16 फीसदी का था।
अर्थव्यवस्था के बारे में रिजर्व बैंक की दृढ़ मान्यता है कि यह तेजी से सुधार के रास्ते पर बढ़ रही है। मैन्यूफैक्चरिंग से लेकर सेवा क्षेत्र का विकास अच्छा चल रहा है। ऐसे में अगर मानसून सामान्य रहा तो चालू वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की विकास दर 8 फीसदी रह सकती है। वैसे, बता दें कि ये सारे अनुमान रिजर्व बैंक साल के शुरू में इसलिए पेश करता है ताकि इनके आधार पर वह साल के दौरान नीति संबंधी फैसले ले सके। इसीलिए वह मौद्रिक नीति की जुलाई, अक्टूबर व जनवरी में तीन बार समीक्षा पेश करता है, जिसके दौरान वह शुरुआती अनुमानों को बदलता भी रहता है।