शहर अजीब संख्याओं का

शिरीष खरे

‘‘मैं शांति और हंसी-खुशी यहां से नहीं जा सकती। यहां से जो तूफान उठा है, उसे यहीं छोड़कर नहीं जा सकती। इस शहर ने मुझे दर्द और परेशानियों से भरे जो लंबे-लंबे दिनरात दिए हैं, उनकी शिकायत किए बगैर, मैं यहां से कैसे जा सकती हूं?’’ मुंबई में ऐनी के दिनरात अब गिने जा रहे हैं। बहुत जल्द ही वह इस शहर को नमस्कार कहकर अपने देश फिनलैंड लौट जाएंगी। मगर जाने के पहले, उन्हें शहर से जुड़ी कुछ संख्याएं परेशान कर रही हैं।

संख्याएं। मुंबई कई अजीबोगरीब संख्याओं से भरा शहर है। जैसे, यहां 1 करोड़ 25 लाख से भी ज्यादा लोगों के पास अपने सेल नम्बर हैं। इतने सेल नम्बर तो कई यूरोपीय देशों के पास भी नहीं हैं। यह और बात है कि मुंबई के करीब 40 फीसदी लोगों को झोपड़पट्टियों में रहना पड़ता है। यहां 67 लाख 20 हजार लोग झोपड़पट्टियों में रहते हैं, जो फिनलैंड की कुल आबादी से करीब डेढ़ गुना ज्यादा है। फिनलैंड की कुल आबादी करीब 50 लाख है, जो वहां के 384 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैली है, जबकि मुंबई के 67 लाख 20 हजार झोपड़पट्टी वासियों के पास ऐसा सौभाग्य कहां है। यहां की 40 फीसदी आबादी के पास तो यहां की 14 फीसदी जमीन ही है, जो 140 वर्ग किलोमीटर से ज्यादा नहीं हो सकती है। यहां कुछ संख्याओं की गणना करने से एक बड़ा हैरतअंगेज आंकड़ा यह भी निकलता है- फिनलैंड की जनसंख्या घनत्व के मुकाबले मुंबई की झोपड़पट्टियों की जनसंख्या का घनत्व करीब 28 हजार गुना ज्यादा है। दूसरी तरफ, मुंबई की झोपड़पट्टी के वासियों की आमदनी फिनलैंड के निवासियों की आमदनी के मुकाबले 100 गुना कम है।

वैसे तो मुंबई देश का सबसे अमीर शहर कहा जाता है, मगर बड़ी अजीब-सी बात है कि इस शहर का हर दूसरा आदमी झोपड़पट्टी में रहता है। मुंबई की प्रति व्यक्ति आय (करीब 7 हजार रूपए महीना) है, जो कि देश की प्रति व्यक्ति आय (करीब 3 हजार रूपए महीना) के मुकाबले दोगुनी से भी ज्यादा है। इसके बावजूद देश की आर्थिक राजधानी की 40 फीसदी आबादी गरीब रेखा के नीचे है, और इसमें से भी 10वां हिस्सा रोजाना 20 रूपए भी नहीं कमा पाता है।

मुंबई की तरक्की यहां के मजदूरों के कंधों से होकर गुजरती है। यहां 66 लाख 16 हजार घरेलू मजदूर हैं, जिसमें से भी 3 लाख 76 हजार सीमांत मजदूर हैं। इन्हीं मजदूरों की बदौलत राज्य सरकार को सलाना 40 हजार करोड़ रूपए टैक्स मिलता है। इसके बावजूद यहां के मजदूरों को घनी और मलिन झोपड़पट्टियों में रहना पड़ता है, जहां पीने का पानी, बिजली, नाली, रास्ता, शौचालय, स्कूल व अस्पताल जैसी बुनियादी सुविधाओं का घनघोर अभाव है। कायदे से तो मुंबई के इतने सारे मजदूरों को जमीन का कम-से-कम 25 फीसदी हिस्सा मिलना चाहिए। मगर बड़ी अजीब-सी बात है कि उन्हें उनकी 14 फीसदी जमीन से भी हटाया जा रहा है। जबकि खुद सरकार यह मानती है कि हर आदमी के लिए 5 वर्ग मीटर और हर परिवार के लिए 25 वर्ग मीटर जमीन होनी ही चाहिए।

स्लमडॉग मिलेनियर की कामयाबी के बाद, मुंबई दुनिया के सबसे दिलचस्प शहरों में से एक माना जाने लगा है। मगर शहर में जमीन का काला कारोबार भी कम दिलचस्प नहीं हैं जिसे एक उदाहरण से समझते हैं। बीते कुछ सालों में, राज्य सरकार ने शहर की 30 हजार एकड़ से भी ज्यादा जमीन प्राइवेट सेक्टर को दी है। 1986 के सीलिंग कानून के बावजूद उसने ऐसा किया है। यह कानून कहता है कि अतिरिक्त जमीन का उपयोग कम लागत के घर बनाने के लिए किया जाए। किसी को 500 मीटर से ज्यादा जमीन तभी दी जाए, जब वह उसमें 40 से 80 वर्ग मीटर के फ्लैट बनाए। मगर देखिए। मुंबई के हीरानंदानी गार्डन में बिल्डर को 230 एकड़ की बेशकीमती जमीन सिर्फ और सिर्फ 40 पैसे प्रति एकड़ की दर से 80 सालों के लिए लीज पर दी गई है। इसके बाद हीरानंदानी गार्डन में ऐसा ‘स्विटजरलैंड’ खड़ा किया गया है जिसमें कम लागत के एक फ्लैट की कीमत सिर्फ 5 करोड़ रूपए है। सोचिए, यहां गरीबों को घर देने का जो खेल खेला जाता है, उसका हर ‘गरीब’  भी कितना करोड़पति होता है?

लेखक ‘चाइल्ड राइट्स एंड यू’ के संचार विभाग से जुड़े हैं।

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