जित्ता ज्यादा हम देखते हैं, उत्ता ज्यादा वो कमाते हैं

अभी इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) को बने तीन साल भी पूरे नहीं हुए हैं। लेकिन उनकी अनुमानित ब्रांड वैल्यू 4.13 अरब डॉलर (18,585 करोड़ डॉलर) की हो गई है। पहले दौर में जनवरी 2008 में आठ टीमों की नीलामी से आईपीएल को जहां 72.36 करोड़ डॉलर (तब की विनिमय दर पर 2840 करोड़ रुपए) मिले थे, वहीं मार्च 2010 में दूसरे दौर में महज दो टीमों की नीलामी से उसे 70.33 करोड़ डॉलर (3200 करोड़ रुपए) मिल गए। कभी सोचा है आपने कि आखिर आठ-दस टीमों के खेलने-खिलाने से कैसे और कहां से ऐसा पैसा बरस रहा है? क्यों तमाम घृणित किस्म की राजनीतिक जोड़तोड़ से, जाने कहां-कहां से करोड़ों जुगाड़कर बड़े-बड़े दिग्गज इस पर दांव लगा रहे हैं?

आखिर देश की सबसे बड़ी निजी कंपनी रिलायंस को क्या पड़ी थी कि वह मुंबई इंडियंस पर दांव लगाए? सुपरस्टार शाहरुख खान को कोलकाता नाइटराइडर्स के फच्चर में फंसने की क्या जरूरत थी? इंडिया सीमेंट ने चेन्नई सुपर किंग्स, डेक्कन क्रोनिकल ने डेक्कन चार्जर्स और विजय माल्या ने रॉयल चैलेंजर्स पर क्यों दांव लगा दिया? और, अब गुजरात व महाराष्ट्र के गीटबाज धंधेबाज शशि थरूर के साथ मिलकर कोच्चि के लिए कहां से और क्यों 33.33 करोड डॉलर जुगाड़ ले आए? इतने सारे सवालों का एक जवाब है कि 120 करोड़ की आबादी वाले इस फुरसतिया देश में क्रिकेट एक राष्ट्रीय पासटाइम है। अस्पताओं तक में मरीज बिस्तर से उठकर टीवी पर मैच देखकर देशी-विदेशी खिलाड़ियों को वहीं से सलाह फेंककर मारते रहते हैं। हमारा यही जुनून आईपीएल और उससे जुड़ी टीमों के लिए कुबेर का खजाना बन गया है। आज हम अगर क्रिकेट देखना बंद कर दें (जो अ-संभव है) तो आईपीएल की जान उसी तरह निकल जाएगी जैसे नाभि का अमृत सूखने पर रावण और पिजड़े में बंद तोते की गरदन मरोड़ने पर राक्षस की जान चली जाती थी।

ब्रोकर फर्म इंडिया इनफोलाइन की एक रिपोर्ट के अनुसार इस बार आईपीएल में भाग ले रही आठ टीमों की औसत आय पिछली बार से 20-30 फीसदी बढ़कर 130 करोड़ रुपए के आसपास रहेगी। यह आमदनी उन्हें टीम की स्पांसरशिप, स्टेडियम में हुए विज्ञापन, अपने नाम से जुडे सामानों की बिक्री, स्टेडियम में टिकटों की बिक्री में मिले हिस्से और मैच को ब्रॉडकास्ट करने से मिली रकम में हिस्सेदारी से होती है। टीम हारे या जीते, उससे उसकी माली हालत पर खास फर्क नहीं पड़ता। पिछली बार शाहरुख खान की कोलकाता नाइटराइडर्स अंक-तालिका में नीचे पड़ी थी, लेकिन धन-तालिका में वह सबसे ऊपर थी।

मुकेश अंबानी की मुंबई इंडियंस के पास पिछली बार 4-5 स्पांसर थे, जबकि इस बार 14 हैं जो उसे करीब 50 करोड़ रुपए देंगे। राजस्थान रॉयल्स के स्पांसरों की संख्या 8 से बढ़कर 12 हो गई है। पिछली बार जीतने पर 4.8 करोड़ रुपए मिलने पर वह फायदे में आ गई थी। अमूमन एक स्पांसरशिप की डील 1 से 15 करोड़ रुपए की होती है। वैसे, नए स्पांसर 30-40 फीसदी ज्यादा दे रहे हैं तो पुराने स्पांसरों ने भी अपनी रकम करीब 15 फीसदी बढ़ा दी है।

आईपीएल के मैचों के दिखानेवाला चैनल सेट मैक्स मौजूदा टीआरपी के आधार पर 10 सेकंड के विज्ञापन पर कंपनियों से 4-5 लाख रुपए लेता है। दूसरी तरफ सेट मैक्स प्रसारण अधिकारों के लिए आईपीएल को अगले तीन सालों में हर साल 670 करोड़ रुपए और उसके बाद के पांच सालों में हर साल 1080 करोड़ रुपए देगा। इसके अलावा उसे हीरो होंडा, पेप्सी, डीएलएफ, सिटी, वोडाफोन व किंगफिशर प्रति वर्ष करीब 135 करोड़ रुपए देते हैं। आईपीएल को हुई इस आमदनी का 80 फीसदी हिस्सा टूर्नामेंट में भाग ले रही टीमों में बराबर-बराबर बांट दिया जाता है और बाकी 20 फीसदी हिस्सा आईपीएल की नियंत्रक बीसीसीआई के खजाने में चला जाता है। अगले दो सालों में टीमों का हिस्सा घटकर 70 फीसदी और फिर 60 फीसदी रह जाएगा। पूरी व्यवस्था ऐसी की गई है कि हर टीम को फेंचाइची की फीस से ज्यादा कमाई हो जाती है।

अभी आईपीएल-3 से हर टीम को आईपीएल को हुई कमाई में हिस्से से लगभग 78 करोड़ रुपए मिलेंगे। इंडिया इंफोलाइन की रिपोर्ट कहती है कि हर टीम को औसतन 30-50 करोड़ रुपए स्पांसरशिप व टिकटों की बिक्री जैसे दूसरे मदों से मिलेंगे। इस तरह उनकी आमदनी 130 करोड़ रुपए के आसपास रहेगी। इसमें से सबसे बड़ा खर्च खिलाड़ियों के वेतन का है जो 17 से 30 करोड़ रुपए बैठता है। फिर फ्रेंचाइजी की फीस है जो अलग-अलग टीमों के लिए अलग-अलग है। जैसे राजस्थान रॉयल्स के लिए यह फीस सबसे कम 30.80 करोड़ रुपए और मुंबई इंडियंस के लिए सबसे ज्यादा 51.50 करोड़ रुपए है। इस सीजन के बाद प्रति टीम लाभ 19 से 43 करोड़ रुपए रहेगा। अगर 50 करोड़ लगाकर 20 करोड़ का मुनाफा हो जाता है तो किसको लालच नहीं होगी। आखिर 40 फीसदी मार्जिन वाले धंधे हैं ही कितने!!!

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  1. upari istar mai dhan bahte pani ki tarah se h……bas schemes / ideas jandar hona chahie har angel aur tengle se jisse legal jaama pahnaya ja sake . kyuki achhe vyakti hamesha achhe kapre pahne hue hi ko apne paas aane dete h .duniabhar ke aarthik vyavastha bahut hi anischinta ki sthiti mai fansa hua h .apne apne vyavastha ki surachha ke liye yeh sab yek vikalp ka prayog h . barsho se lakh kuch karne ke baad bhi debt free organisation ke rup mai nahi ban paai h . apni apni sakh bachane ke liye aage se aage kadam badhana parta h jisse sab kuch niyantran mai rahe . anyatha !!! dhahega…dhar…dhar..karke . ineh sirf aage se age dhan hi ki avsyakta lagi rahti h aadmio ki nahi .aadmi to already itne h ki mahina khatm hote hi samne aa jainge aapne aap . karj ka hi adjustment aanewale sambhawnao ke sath samanter kriya mai chalta rahega jab tak sansar mai chand taare timtimana band nahi kar de . kisi ki koi galti nahi h. byapaar ho ya udyog isi mushkilo se gujarna parega . yeh dukh vyvastha ke malik hi anubhav kar sakte h aur koi nahi .abhi koi alladin ka chirag ki tarah aakar yeh kahe ki mere paas jitna bhi mange dhan le sakta h bina kisi byaj ke …..line lag jaigi ……………………. jise jarurat nahi bhi ho vo bhi yeh soch ke iktha kar lega ki aage kbhi bhi kaam aa sakta h apne ko bachane ke liye . kare to kare kya koi >>> sach hi hamne padha h ki….. jokhim lenewala hi asli SAHASI UDYOGPATI / BYAPARI hota h . aarthik jagat mai SAHAS hi pahli pramukhta rahti h jo sabhi jante h . leader saman vyakti se hi unnati sabhav h jiske sahare sabhi kuch janha tanha chalta hua dekh rahe h .Nit nai nai kaary ki prerne hamesha hi milti rahti h . Tabhi to school / college chal rahe h janha aanewale bhayishya ke sapne janm le rahe h aur tyyari chal rahi h sunhare bhavishya ki aur………unlimited anant ki yatra ki aur……….123456789…………………..

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