दो दशकों की विकटतम डिपॉजिट तंगी

देश इस समय विचित्र स्थिति से गुजर रहा है। तेज आर्थिक विकास के लिए ज़रूरी है कि बैंक बेधड़क उद्योग-धंधों को उधार दे सकें। इसके लिए ज़रूरी है कि खुद बैंकों के डिपॉजिट अच्छी गति से बढ़ते रहें। लेकिन देश के निजी से लेकर सरकारी बैंक तक सभी डिपॉजिट की तंगी से जूझ रहे हैं। इससे उधार देने की उनकी क्षमता सीमित हो गई है। निजी क्षेत्र के सबसे बड़े बैंक, एचडीएफसी बैंक ने हाल ही में एक रिसर्च रिपोर्ट जारी की है। इसके मुताबिक देश में पिछले दो सालों में डिपॉजिट बढ़ने की औसत दर 11.1% रही है, जबकि इस दौरान बैंकों द्वारा दिए गए उधार औसतन 16.8% की दर से बढ़े हैं। डिपॉजिट और उधार के इस बढ़ते अंतर के चलते भारतीय बैकिंग क्षेत्र दो दशकों की सबसे भयंकर डिपॉजिट तंगी से गुजर रहा है। फिलहाल बैंकों के चालू व बचत खातों (कासा) की जमा कुल जमा की 41% हो गई है, जबकि साल भर पहले यह 43% हुआ करती थी। कासा जमा का 40% से नीचे जाना बैंकिंग सिस्टम के लिए बेहद खतरनाक माना जाता है। बता दें कि इसी साल जुलाई में भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास भी उधार की तुलना में धीमी गति से आ रहे डिपॉजिट पर चिंता जता चुके हैं। उनका कहना है कि इससे सिस्टम में लिक्विडिटी या धन के प्रवाह की संरचनात्मक समस्या पैदा हो सकती है। अब सोमवार का व्योम…

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