कौन आज़ाद हुआ? क्या स्वदेशी व श्रम!

यूपीआई का हल्ला। प्रधानमंत्री से लेकर वित्तमंत्री की वाह-वाही थम नहीं नहीं रहे। लेकिन यूपीआई में सबसे ज्यादा धंधा पेटीएम और गूगल-पे कर रहे हैं। पेटीएम स्वामित्व के लिहाज से अब चीनी कंपनी है, जबकि गूगल-पे पूरी तरह अमेरिकी है। क्रेडिट व डेबिट कार्ड के लिए स्वदेशी रूपे को लॉन्च किए हुए 11 साल हो चुके हैं। लेकिन अब भी अधिकांश कार्ड वीसा या मास्टरकार्ड हैं जो अमेरिकी कंपनियां हैं जिनके पास भारतीय उपभोक्ताओं की खरीद से लेकर बैंकिंग सौदों तक का पल-पल का डेटा पहुंचता रहता है। मेक-इन इंडिया लॉन्च किया गया। लेकिन इसमें भी विदेशी पूंजी निवेश (एफडीआई) को लुभाया गया कि वे भारत आकर उत्पादन करें और दुनिया भर को निर्यात करें। इसमें स्वदेशी तो श्रम ही हुआ और मुनाफा विदेश चला जाएगा। श्रम इतना उचाट महसूस कर रहा है कि उसकी भागीदारी घटती जा रही है। इस समय देश में 15 साल से 59 साल तक के कामकाज़ी लोगों की आबादी 61% या करीब 84 करोड़ है। लेकिन श्रम भागीदारी 40% से भी कम है। बाकी 60% श्रमिक इतने हताश हैं कि बाज़ार में आ ही नहीं रहे। ऐसा क्यों? अब गुरुवार की दशा-दिशा…

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