विषमता पर प्रधानमंत्री की बात निराली!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भले ही दस साल में देश के 25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकालने का दावा करते रहें। लेकिन हकीकत में उनकी नीयत गरीब को गरीब ही बनाए रखने की है। आखिर 81.35 करोड़ लोगों को हर महीने पांच किलो अनाज और 11.8 करोड़ किसानों को हर महीने 500 रुपए की किसान सम्मान निधि देते रहने का क्या तुक है? क्या गरीबों को काम और किसानों को वाजिब दाम नहीं दिया जा सकता? प्रधानमंत्री से हाल में भारत में अमीर-गरीब की खाईं बढ़ने पर सवाल पूछा गया तो उनका जवाब था, “तो क्या सबके-सब गरीब होने चाहिए? एक तो इसका उपाय यह है कि कोई अंतर ही नहीं हो। देश में पहले ऐसा था। अब आप कहते हैं कि सब अमीर होने चाहिए। धीरे-धीरे होंगे कि रातोंरात हो जाएंगे? थोड़े ऊपर आएंगे, वो नीचे वालों को ऊपर लाएंगे। एक प्रोसेस होती है। इसलिए या तो तय कर लें कि सब गरीब रहना चाहते हैं। नहीं तो दूसरा रास्ता यह है कि हम कोशिश करें आगे बढ़ने की। आज दस आगे बढ़ेंगे, कल सौ आगे बढ़ेंगे, परसों पांच सौ बढ़ेंगे। यह हो रहा है। पहले देश में कुछ सैंकड़ों स्टार्ट-अप थे। आज सवा लाख स्टार्ट-अप हैं। प्रगति हो रही है। पहले हवाई जहाज़ में बैठनेवालों की संख्या इतनी-सी थी। आज 1000 नए हवाई जहाज़ों का ऑर्डर बुक करना पड़ा है। समृद्धि बढ़ी है। लोग शादी के लिए विदेश जा रहे हैं।” अब मंगलवार की दृष्टि…

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