अनिश्चितता बाहर है, अंदर भी कम नहीं!

बाज़ार को दो साल से चढ़ाए जा रहे देश के प्रोफेनशल निवेशक हों, संस्थाएं या विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) हो, वे इधर जमकर मुनाफावसूली कर रह हैं तो यह एकदम स्वाभाविक है। जो भी ज्यादा कमा लेता है, उसे सब गंवा देने की चिंता सताती है। वो भी तब जब तरफ अनिश्चितता के घने बादल छाते जा रहे हों। बाहर ही नहीं, अब तो देश के भीतर भी पांच राज्यों के ताज़ा विधानसभा चुनावों ने अनिश्चितता बढ़ा दी है। अभी जो हुआ, वह अपनी जगह है। लेकिन अहम सवाल यह है कि 2024 के लोकसभा चुनावों का नतीज़ा क्या होगा? कहीं ऐसा तो नहीं होगा कि नरेंद्र मोदी हार के डर से देश में पुतिन की तरह दशकों तक सत्ता में बने रहने का कोई कानून बना डालेंगे। आखिर संसद में उनका बहुमत है! अब गुरुवार की दशा-दिशा…

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