खुल रही ढोल की पोल, झांसा होता गोल

भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। पांच साल में हर हाल में अमेरिका व चीन के बाद तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। फिर भी विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) हमारे शेयर बाज़ार से भाग क्यों रहे हैं? अचम्भे की बात यह भी है कि जून 2022 से सितंबर 2024 तक जब भारतीय शेयर बाज़ार में जबरदस्त तेज़ी का दौर था, जब सेंसेक्स करीब-करीब 59% बढ़ गया, जब घरेलू निवेशक संस्थाओं (डीआईआई) ने कैश सेगमेंट में ₹5.91 लाख करोड़ की शुद्ध खरीद की, तब एफपीआई ने ₹1.82 लाख करोड़ से ज्यादा की शुद्ध बिकवाली की। इसका प्रमुख कारण है कि उन्हें भारत सरकार के बढ़े-चढ़े आर्थिक दावों पर कतई यकीन नहीं है। जैसे, भारत सरकार कहती है कि देश का ऋण-जीडीपी अनुपात काफी कम है, जबकि विश्व बैंक और आईएमएफ बताते हैं कि यह दरअसल 82% से ज्यादा है। इससे पहले 2003 में ही यह इससे ज्यादा 83% तक गया था। जो निर्यात 2013 में जीडीपी का 25% हुआ करता था, वो 2015 से घटना शुरू हुआ और अभी तक घटते-घटते जीडीपी के 22.8% पर आ चुका है। बैंकिंग सिस्टम में अधिकारियों के भ्रष्टाचार पर कोई अंकुश नहीं। विदेशी मुद्रा निकलते जाने से डॉलर पहली बार 84 रुपए के पार जा चुका है। अब मंगलवार की दृष्टि…

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