आप शेयर बाज़ार में अच्छी तरह ट्रेड करना चाहते हैं तो आपको मानव मन को अच्छी तरह समझना पड़ेगा। आखिर बाज़ार में लोग ही तो हैं जो आशा-निराशा, लालच व भय जैसी तमाम मानवीय दुर्बलताओं के पुतले हैं। ये दुर्बलताएं ही किसी ट्रेडर के लिए अच्छे शिकार का जानदार मौका पेश करती हैं। निवेश व ट्रेडिंग के मनोविज्ञान पर यूं तो तमाम किताबें लिखी गई हैं। लेकिन उनके चक्कर में पड़ने के बजाय यही पर्याप्त होगा कि हम बराबर गहरा आत्म-निरीक्षण करते रहें।
ट्रेडर भावों के ऊपर-नीचे जाने को लेकर खेलता है। लेकिन भाव आखिर ऊपर-नीचे जाते क्यों हैं? मांग और आपूर्ति का बड़ा सामान्य-सा नियम है जिसे आप भलीभांति जानते हैं। लाखों ट्रेडर एक साथ बाज़ार में डटे होते हैं। इनमें प्रोफेशनल ट्रेडर होते हैं तो कानपुर या औरैया के किसी कस्बे में बैठा नौसिखिया ट्रेडर भी। कुछ को लगता है कि भाव अभी जहां हैं, वहां से ऊपर जाएंगे। ठीक उसी वक्त कुछ को लगता है कि भावों को यहां से नीचे ही जाना है। पहला खरीदता है, दूसरा बेचता है। मांग ज्यादा सप्लाई कम तो भाव ज्यादा। यूं तो कोई बेचता है तभी कोई खरीदता है। लेकिन आम बाज़ार की तरह यहां भी खरीदनेवालों की भीड़ देखकर बेचनेवाला भाव बढ़ाता चला जाता है। वहीं मांग कम हो और सप्लाई ज्यादा तो इसका ठीक उल्टा होता है।
इस दौरान लाखों ट्रेडर और निवेशक भावनाओं के समुद्र में डूबते-उतराते रहते हैं। वे किसी न किसी तरह के आवेश में रहते हैं। आवेश में रहते हैं तो उनकी तरफ से गलतियां होने की प्रायिकता काफी बढ़ जाती है। आवेश में रहते हैं तो वे रिस्क का सही आकलन नहीं कर पाते और अतियों पर जाकर फैसला करते हैं। फिर जब धन कमाने का मसला हो तो भावनाएं ज्यादा ही उबाल खाती हैं। आप शायद इस बात से सहमत होंगे कि 1000 रुपए का फायदा मिल जाए तो यकीनन आप खुश होंगे। लेकिन 1000 रुपयों का घाटा हो जाए तो आपको कहीं ज्यादा तकलीफ होती है। सोचिएगा कि ऐसी गैर-बराबरी क्यों करता है हमारा मन?
घाटा लगते ही आप हताशा में चले जाते हैं और खरीदने-बेचने के गलत फैसले करने लग जाते हैं। यह सहज मनोविज्ञान है जिससे आमतौर पर कोई बच नहीं सकता है। लेकिन सफल ट्रेडर को इसी मनोविज्ञान को पकड़कर तोड़ना होता है। इसलिए पहले तो यह ज़रूरी है कि वो अपने ऊपर भावनाओं को कतई न हावी होने दे। दूसरे, उसे दूसरों की भावनाओं का सही-सही आकलन करना भी सीखना पड़ता है ताकि वह दूसरों की गलती को अपने लाभ के मौके में तब्दील कर सके।
सालोंसाल तक आर्थिक और वित्तीय सिद्धांत में माना जाता रहा कि यहां सब कुछ बड़ा तार्किक चलता है। हर व्यक्ति बहुत ही तर्कसंगत व्यवहार करता है और तब तक उपलब्ध सारी सूचनाओं पर गौर करने के बाद ही कोई निर्णय लेता है। लेकिन यह सिद्धांत असल जीवन में पूरी तरह बकवास है। यह हर सफल ट्रेडर जानता है। होता यह है कि सूचनाओं के सामने होते हुए भी इंसान मन की धारणा के हिसाब से उसे देखता है। गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं – मन एव मनुष्यानाम् कारण बंधन मोक्षयो। ट्रेडिंग पर यह बात सरासर लागू होती है कि मन ही आपके लाभ-हानि का मुख्य कारण है। यही से सारी व्यवस्था निकलती है जो टेक्निकल एनालिसिस और धन प्रबंधन को कामयाब बनाती है। तमाम साधन तो रथ में जुते घोड़े हैं, जबकि सारथी आप हैं। मन पर वश किया तभी आप निर्विकार सारथी बनकर इन साधनों का सही इस्तेमाल कर पाएंगे।
ट्रेडर जानते हैं कि बाज़ार की कुल चाल कुछ भी हो, लेकिन ज्यादातर लोग ज्यादातर वक्त अतार्किक कदम उठाते हैं और यह सिलसिला लगातार दोहराया जाता है। भावना के असर के कुछ नमूने देखिए। आशा: मुझे पक्का पता है कि मेरे खरीदने के बाद यह शेयर बढ़ेगा। डर: बहुत हो गया। अब मैं और घाटा नहीं उठा सकता। लालच: मैंने तो इतने नोट बना लिए। मैं अब अपनी पोजिशन दोगुनी कर देता हूं। हताशा: यह ट्रेडिंग सिस्टम तो कोई काम ही नहीं करता। लगातार घाटे पर घाटा दे रहा है। अंधा-विश्वास: क्या कमाल एनालिसिस करता है वो। बाज़ार में हमेशा वहीं होता है जो वो कहता है। अति-विश्वास: मैंने जैसा कहा था, वैसा ही हुआ।
ऐसे अनेकानेक भाव हैं जो आपको बहला-फुसलाकर घाटे की खाईं में धकेल देते हैं। इस खाईं में आपकी सारी ट्रेडिंग पूंजी डूब जाती है और फिर आप कभी वहां से निकल ही नहीं पाते। इसलिए ट्रेडिंग में कामयाबी की सबसे पहली शर्त है कि हम इन भावों व भावनाओं को समझकर खुद को इनके झांसे में न आने दें। दूसरा चरण है अपनी तर्क-पद्धति को दुरुस्त करते हुए बाज़ार की सही-सही स्थिति का विश्लेषण। यहां फिर हमारे पूर्वाग्रह, अब तक सीखी गई बातें रास्ता रोककर खड़ी हो जाती हैं। ऐसे कुछ पूर्वाग्रह हैं – कम सूचनाओं के आधार पर बड़े फैसले लेना, जो पूंजी गंवा दी उसको लेकर रोते रहना और जो बची है उसको तवज्जो न देना, स्टॉप लॉस को ट्रेडिंग की बिजनेस लागत न समझकर सदमा समझना, मुनाफे को निकाल लेना और घाटे के ढेर पर लगातार बैठे रहना और दूसरों के कहने और भरोसे पर भरोसा करना।
अंत में सार की बात यह है कि अगर आप बुद्ध नहीं बन सकते तो शेयर बाज़ार में ट्रेडिंग से नहीं कमा सकते।