गुरु, किताब या ज्ञान के अन्य स्रोतों की भूमिका इतनी भर है कि वे हमारे मन-मस्तिष्क पर पड़े माया के परदे को हटा देते हैं। इसके बाद वास्तविक सच तक पहुंचने का संघर्ष हमें अकेले अपने दम पर करना पड़ता है।और भीऔर भी

पुराने के भीतर नया पनपता रहता है। प्रकृति में पुराना हमेशा नए को जगह दे देता है। लेकिन समाज में पुराना अपनी जगह सहजता से छोड़ने को तैयार नहीं होता। इसलिए संघर्ष होता है, खून-खच्चर होता है।और भीऔर भी