शेयर बाज़ार में निवेश उन्हीं कंपनियों में करना चाहिए, जिनका बिजनेस हमें सही तरीके से समझ में आ जाए। यह समझ हर किसी को अलग-अलग हो सकती है। लेकिन रीयल एस्टेट एक ऐसा बिजनेस है जिसे मोटामोटी देश के हर कोने में रहनेवाला व्यक्ति अपने आसपास देखता और समझता होगा। हाल की बात करें तो इस क्षेत्र में पूरे साल 2023 और बीच 2024 तक अच्छी-खासी तेज़ी दिखाई दी। जमकर मांग आ रही थी तो दाम बढ़तेऔरऔर भी

अगर आप शेयर बाज़ार का फायदा उठाने के बारे में गंभीर हैं तो बिजनेस अखबारों की हेडलाइंस, टीवी चैनलों की सिफारिशों और ऑनलाइन या वॉट्स-अप ग्रुप में दी जा रही टिप्स से ऊपर उठना होगा। जिस भी कंपनी के शेयर खरीदने हैं, उसके बिजनेस मॉडल और प्रबंधन की कुशलता के साथ ही यह भी समझना होगा कि वो हासिल लाभ को लगाती कहां है। कंपनी का बिजनेस ऐसा होना चाहिए जो लगाई गई पूंजी पर ज्यादा रिटर्नऔरऔर भी

निवेश हमारे आर्थिक व वित्तीय जीवन में छाई अनिश्चितता से लड़ने का साधन है। जिस तरह युद्ध जीतने के लिए सेना बनाकर चला जाता है, जिसमें थल, वायु व नौसेना की अलग-अलग भूमिका होती है, उसी तरह निवेश में सफलता के लिए पोर्टफोलियो बनाकर चलना पड़ता है। कुछ धन सोने में, कुछ एफडी व पीपीएफ जैसे स्थाई आय के माध्यमों में, कुछ हिस्सा ज़मीन-जायदाद में और कुछ हिस्सा शेयर बाज़ार में। शेयर बाज़ार में भी कुछ कंपनियांऔरऔर भी

शेयर बाज़ार कभी सीधी रेखा में नहीं चलता। गिरते-गिरते उठ जाना और उठते-उठते गिर जाना उसका स्वभाव है। 25 मार्च को निफ्टी ऊपर में 23,750 से 7 अप्रैल को नीचे में 21750 तक गिर गया। फिर उठा तो 15 मई को 25,115 तक जाने के बाद नीचे उतर गया। ठीक उस वक्त जब अच्छे-खासे निवेशक व ट्रेडर एक दिशा पकड़ चुके होते हैं, तभी बाज़ार दूसरी दिशा पकड़ लेता है। बाज़ार की ऐसी हरकत अनायास नहीं। इसकेऔरऔर भी

शेयर बाज़ार में कुछ भी किसी भी भाव पर खरीद लेने का कोई मतलब नहीं। हालांकि ब्रोकर और जानेमाने निवेश सलाहकार अक्सर हम से यही करवाते हैं। जिन शेयरों में चाल आ गई होती है और वे किसी वजह से बढ़ रहे होते हैं, वे फटाक से उन्हें उठाकर कहते हैं कि खरीद लो। वे निवेशकों की लालच का फायदा उठाते हैं और जब किसी वजह से बाज़ार या वो शेयर गिरता है तो निवेशकों के डरऔरऔर भी

युद्ध अच्छा नहीं। अच्छा है युद्ध विराम हो गया। आरपीजी ग्रुप के चेयरमैन और खुद करीब 370 करोड़ डॉलर नेटवर्थ वाले हर्ष गोयनका का कहना है कि युद्ध अर्थव्यवस्था को कमज़ोर करता है, भले ही वो जीतनेवाले देश की हो। उन्होंने कहा था कि भारत-पाक तनाव से रुपए के डगमगाने, विदेशी निवेशकों के भागने, कच्चे तेल के उछलने का खतरा है। इससे रक्षा खर्च बढेगा, इंफ्रास्ट्रक्चर पीछे चला जाएगा, शेयर बाज़ार डुबकी लगा सकता है। युद्ध केऔरऔर भी

हम-आप जैसे आम निवेशक अपने दम पर सीधे शेयरों में निवेश करके लम्बे समय में म्यूचुअल फंडों की इक्विटी स्कीमों को मात नहीं दे सकते। इसके लिए पोर्टफोलियो को जिस तरह बराबर शफल करते रहने की ज़रूरत है, उसके लिए न तो हमारे पास पर्याप्त समय होता है और न ही ज़रूरी सतर्कता व विशेषज्ञता। इसलिए हमें बचत का एक हिस्सा नियमित रूप से एसआईपी के जरिए म्यूचुअल फंड की इक्विटी स्कीमों से लगाते रहना चाहिए। हमऔरऔर भी

निवेश में हम अक्सर दो अतियों की तरफ भागते हैं। या तो एकदम आसान और पका-पकाया रास्ता तलाशते हैं जिसमें हमें कुछ न करना पड़े। बस किसी ने बता दिया और हमने खरीद लिया। बतानेवाला कोई दोस्त, वॉट्स-अप ग्रुप, ब्रोकर, बिजनेस चैनल का एनालिस्ट, अखबार या वेबपोर्टल का कॉलम तक हो सकता है। नहीं तो हम निवेश के एल्फा, बीटा, गामा और डेल्टा के चक्कर में ऐसे उलझ जाते हैं कि समय पर कोई फैसला नहीं करऔरऔर भी

अपने आसपास के जितने भी निवेशकों को मैं जानता हूं. उनमें से ज्यादातर लोग बिजनेस चैनलों, अखबारों, निवेश पोर्टलों, ब्रोकरों और वॉट्स-अप ग्रुप में मिली सलाहों या टिप्स पर अपना धन शेयर बाज़ार में लगाते हैं। अक्सर कन्फ्यूज़ रहते हैं कि छोटी अवधि के ट्रेडर हैं या लम्बे समय के निवेशक। मजे की बात यह है कि बिना किसी अपवाद के ये सारे के सारे निवेशक छोटी अवधि और लम्बी अवधि, दोनों में दुखी ही रहते हैंऔरऔर भी

हर चमकती चीज़ सोना नहीं होती। इसी तरह हर चर्चित और चढ़ा हुआ शेयर अच्छा नहीं होता। हमें हर चमक को समझने का सलीका विकसित करना होता है। साथ ही पहले से चढ़े हुए शेयरों की फांस से बचना चाहिए। निवेश की दुनिया में हमें विश्वास नहीं, संदेह से शुरू करना चाहिए। उन्हीं कंपनियों में निवेश करें जिनका बिजनेस मॉडल हमें अच्छी तरह समझ में आ जाए। मुफ्त के तमाम सलाहकार बताते फिरते हैं कि यह मल्टी-बैगरऔरऔर भी