हमारा जो जीडीपी या अर्थव्यवस्था मार्च 2024 में खत्म वित्त वर्ष 2023-24 में 8.2% की शानदार गति से बढ़ी थी, उसकी विकास दर ठीक तीन महीने बाद जून 2024 में खत्म तिमाही में घटकर 6.7% पर आ गई! यह क्यों हुआ, क्यों यह हुआ? हालांकि सरकारी अर्थशास्त्री इस विकास दर को भी ‘रोबस्ट’ बता रहे हैं। कभी सरकार के आलोचक रहे भारतीय स्टेट बैंक के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष ने अपने 800-1000 शब्दों के ताज़ाऔरऔर भी

मोदी सरकार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही सब कुछ हैं। उनके मंत्रियों-संत्रियों के लिए तो ‘भज गोविंदम’ यही है कि मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई। लेकिन मोदी का जादू धीरे-धीरे टूट रहा है। फिर भी तिलिस्म के दो सूत्र अभी तक धमाल मचाए हुए हैं। एक यह कि दुनिया भर में मोदी का डंका बज रहा है और उन्होंने भारत का बड़ा नाम किया है। गांवों से लेकर शहरों व महानगरों तक तमाम बड़े-बूढ़े इसीऔरऔर भी

जिस तरह नोटबंदी के घोषित लक्ष्य और असली मकसद अलग-अलग थे, उसी तरह जनधन खातों का असली मकसद देश के वंचित दबकों को सशक्त बनाना कतई नहीं था। अजीब बात है कि करोड़ों लोगों के पास कमाई के साधन और पेट भरने को अनाज नहीं, उनके बैंक खाते खोलने का ढोल बजाया जा रहा है! घर में नहीं है दाने, अम्मा चली भुनाने। सरकार भलीभांति जानती है कि किसानों को सौगात नहीं, फसलों का वाजिब दाम चाहिए,औरऔर भी

यह महज संयोग नहीं कि जो राज्य शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य सुविधाओं तक में सबसे पिछड़े और प्रति व्यक्ति आय में सबसे नीचे हैं, वहां सबसे ज्यादा जनधन खाते खोले गए हैं। उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 9.45 करोड़ जनधन खाते खोले गए हैं। उसके बाद 6 करोड़ खातों के साथ बिहार का नंबर है। ये दोनों ही राज्य प्रति व्यक्ति आय में देश के 33 राज्यों व संघशासित क्षेत्रों में सबसे निचले पायदान पर हैं। इसऔरऔर भी

आज के दौर में डिमांड हो तो कोई भी सप्लाई लेकर पहुंच जाता है। लेकिन सप्लाई ही सप्लाई हो और डिमांड न हो तो धंधा ही नहीं, अर्थव्यवस्था तक बैठ जाती है। इसमें भी अगर सप्लाई का इंतज़ाम सरकार की तरफ से किया जा रहा हो तो इसका फायदा तंत्र से चिपकी जोंकों को ही होता है, व्यापक अवाम को नहीं। प्रधानमंत्री जनधन योजना का भी यही हाल है। हर जनधन खाते के साथ प्रधानमंत्री जीवन ज्योतिऔरऔर भी

कमाल की बात है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद मानते हैं कि वे श्रेय की राजनीति करते हैं। 9 फरवरी को राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव में उहोंने कहा था, “गांधी जी कहते थे श्रेय और प्रिय। हमने श्रेय का रास्ता चुना।” अनजाने में कही यह बात उनकी हर हरकत में झलकती है। मगर, दिक्कत यह है कि उपलब्धियों का श्रेय लेने में वे झूठ की अति कर देते हैं। लेकिन कमियों-खामियों पर फूटीऔरऔर भी

नेकी कर दरिया में डाल। यह महज एक कहावत नहीं, बल्कि भारत की लम्बी परम्परा है। इतिहास गवाह है कि रेगिस्तान से घिरे, पानी को तरसते राजस्थान में जब वहां के सेठों ने पक्की बावडियां बनवाईं तो उन पर कहीं नाम नहीं लिखवाया। लोगों ने बहुत कहा तो वे बावड़ी की तलहटी में अपना नाम लिखवाने को तैयार हुए। लेकिन आज वही भारत है, जहां ऐसा प्रधानमंत्री है जो देश में किए गए हर छोटे-बड़े काम काऔरऔर भी

बाज़ार की शक्तियां जितना मुक्त होकर काम करेंगी, उनकी दक्षता उतनी ही अधिक होगी। लेकिन रिजर्व बैंक देश के भीतर ही नहीं, देश के बाहर भी रुपए से जुड़े करेंसी डेरिवेटिव्स को कंट्रोल करने की फिराक में है। उसने इसी साल अप्रैल में प्रस्ताव रखा ताकि वो ऑफशोर बगैर-डिलीवरी वाले फॉरवर्ड (एनडीएफ) बाज़ार पर नियंत्रण कर सके। उसका कहना है कि इस बाज़ार में सक्रिय इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म (ईटीएफ) उसके पास पंजीयन कराएं क्योंकि इन पर भारतऔरऔर भी

बाज़ार जितना विकसित, जितने ज्यादा भागीदार और वोल्यूम जितना ज्यादा, उसमें ताकतवर शक्तियों द्वारा जोड़-तोड़ करने की गुंजाइश उतनी ही कम हो जाती है। यह बात आम बाज़ार के साथ ही शेयर व करेंसी बाज़ार समेत समूचे वित्तीय बाज़ार पर लागू होती है। नियामक संस्थाओं का काम बाज़ार का नियंत्रण नहीं, बल्कि नियमन है ताकि वो अच्छी तरह विकसित हो सके। लेकिन इस साल के शुरू में बैंकिंग व मुद्रा क्षेत्र के नियामक रिजर्व बैंक ने ऐसाऔरऔर भी

कहा और माना जाता है कि अपने यहां रुपया पूरी तरह बाज़ार के हवाले हैं, फ्लोटिंग विनिमय दर की व्यवस्था है। लेकिन ऐसा है नहीं। रिजर्व बैंक बराबर अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपए की विनिमय दर को मैनज करता है। रुपया ज्यादा न गिरे, इसके लिए विदेशी मुद्रा भंडार से बाज़ार में डॉलर डाल देता है और रुपया ज्यादा न चढ़े, इसके लिए बाज़ार से डॉलर खींच लेता है। हालांकि वो कहता है कि विनिमय दर कीऔरऔर भी