अगर कुछ ठोस उपाय नहीं किए गए तो भारतीय रेल की माली हालत ध्वस्त होने की कगार है। करीब महीने भर पहले 17 फरवरी को परमाणु ऊर्जा आयोग के चेयरमैन अनिल काकोदकर की अध्यक्षता में बने विशेषज्ञ दल ने अपनी रिपोर्ट में यह बात कही थी। उसका कहना था कि भारतीय रेल को सुरक्षित यात्रा के मानकों को पूरा करने के लिए करीब एक लाख करोड़ रुपए लगाने होंगे। इसके दस दिन बाद 27 फरवरी को राष्ट्रीयऔरऔर भी

भारतीय रेल के पास दुनिया में अमेरिका, रूस व चीन के बाद चौथा सबसे बड़ा नेटवर्क है। उसका जाल 65,000 किलोमीटर लम्बाई में फैला है जिस पर उसने 1,14,500 किलोमीटर पटरियां बिछा रखी हैं। वह लगभग 10,500 ट्रेनें चलाती है जिनसे हर दिन करीब तीन करोड़ यात्री सफर करते हैं और 28 लाख टन माल आता-जाता है। रेलवे की आय का करीब 70 फीसदी हिस्सा मालभाड़े से आता है। बाकी 30 फीसदी में यात्री किराए से लेकरऔरऔर भी

अभी रेल बजट आने में पूरे एक हफ्ते बचे हैं। नए वित्त वर्ष 2012-13 का रेल बजट 14 मार्च को पेश किया जाना है। लेकिन रेल मंत्रालय ने तमाम जिंसों का मालभाड़ा अभी से 20 फीसदी तक बढ़ा दिया है। यह वृद्धि मंगलवार को गुपचुप कर दी गई। किसी तरह की तोहमत से बचने के लिए रेल मंत्रालय ने इसे मालभाड़ा को बढ़ाने के बजाय तर्कसंगत बनाने का नाम दिया है। इसके तहत असल में मालभाड़े कीऔरऔर भी

भारतीय रेल के जिन जनरल डिब्बों और लोकल उपनगरीय ट्रेनों में देश के बूढ़े, बच्चे, महिलाएं और युवा जानवरों की तरह सफर करते हैं, सरकार का मानना है कि उससे उसे सबसे ज्यादा घाटा हो रहा है और इनके किरायों में वृद्धि करना अब अपरिहार्य हो गया है। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, रेलवे बोर्ड के पूर्व सदस्य (ट्रैफिक) वीनू एन माथुर का कहना है यात्री किरायों को बढ़ाए बगैर रेलवे के घाटे को संभालऔरऔर भी

ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (टीसीआई) माल की ढुलाई ही नहीं करती, सप्लाई चेन और लॉजिस्टिक्स सेवाएं भी मुहैया कराती है। 1958 में शुरुआत कोलकाता में एक ट्रक से की थी। अब दुनिया के 12 देशों तक पहुंच चुकी है। भारत में लॉजिस्टिक्स उद्योग की सबसे बड़ी कंपनी है। दावा है कि वह देश के कुल जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) का 2.5 फीसदी अकेले इधर से उधर करती है। फिलहाल ताजा घोषित नतीजों के अनुसार उसने वित्त वर्षऔरऔर भी

भारतीय रेल 157 साल पुरानी है। देश के कुल 1083 स्टेशनों को जोड़ती है। हर दिन 2.20 करोड़ लोग इससे सफर करते हैं और 25 लाख टन माल ढोया जाता है। 2004-05 में हर दिन चलनेवाली ट्रेनों की संख्या 16,021 और पूरे साल में यात्रियों की संख्या 538 करोड़ थी। 2009-10 में कुल यात्रियों की संख्या 720 करोड़ और प्रतिदिन चलनेवाली ट्रेनों की संख्या 18,820 हो गई। यानी, औसत की बात करें कि देश की पूरी आबादीऔरऔर भी

भारतीय रेल ने नए वित्त वर्ष 2011-12 में 57,630 करोड़ रुपए खर्च करने का निर्णय लिया है। यह किसी एक साल में रेलवे का अब तक का सबसे बड़ा आयोजना खर्च है। इस खर्च में से 20,000 करोड़ रुपए वित्त मंत्रालय से बजटीय सहयोग के रूप में मिलेंगे। भारतीय रेल अपने आंतरिक स्रोतों से 14,219 करोड़ रुपए लगाएगी। डीजल पर सेस या अधिभार से 1041 करोड़ रुपए मिलेंगे। निजी क्षेत्र की भागीदारी वाली पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप)औरऔर भी

यूं तो ममता बनर्जी का रेल बजट सिर्फ राजनीति का झुनझुना भर है। 85 पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) परियोजनाओं की घोषणा भी बहुत बढ़ी-चढ़ी लगती है। लेकिन इससे यह संकेत जरूर मिलता है कि भारतीय रेल निजीकरण की दिशा में बढ़ रही है। आज ही आई आर्थिक समीक्षा ने आम बजट को लेकर सकारात्मक संकेत दिए हैं। राजकोषीय घाटे को जीपीजी के 4.8 फीसदी पर लाना दिखाता है कि सरकार अपने खजाने को चाक-चौबंद करने के प्रतिऔरऔर भी

शुक्रवार को पेश होनेवाले रेल बजट में आम यात्री किराए में किसी बढ़े बदलाव की उम्मीद नहीं है। लगातार पिछले सात सालों से ऐसा ही होता आ रहा है। लेकिन उच्च श्रेणी के किराए में मामूली वृद्धि हो सकती है, जबकि अनाज व पेट्रोलियम तेल को छोड़कर ज्यादातर जिसों के मालभाड़े में 8 फीसदी वृद्धि की जा सकती है। उम्मीद है कि 100 नई ट्रेनों की घोषणा रेल मंत्री ममता बनर्जी करेंगी। इसमें से करीब एक दर्जनऔरऔर भी

उलटी गिनती शुरू हो चुकी है। बजट से पहले केवल एक कारोबारी दिन बचा है। लेकिन बाजार में छाई निराशा सुरसा के मुंह की तरह विकराल होती जा रही है। निफ्टी आज साढ़े तीन फीसदी से ज्यादा गिरकर 5242 तक चला गया। सेंसेक्स भी 600 अंक से ज्यादा गिरकर 17,560 तक पहुंच गया। हालांकि बंद होते-होते बाजार थोड़ा संभला है। इस गिरावट के पीछे खिलाड़ियों के खेल अपनी जगह होंगे। लेकिन ट्रेडर और निवेशक अब नए फेरऔरऔर भी