उसे प्रकृति कहिए या भगवान, उसकी बनाई हर चीज अपूर्ण होती है, आदर्श नहीं। आदर्श तो इंसान ने अपनी प्रेरणा के लिए बनाए हैं। इसलिए इंसान की किसी भी रचना को यथार्थ का पैमाना मानना सही नहीं।और भीऔर भी