देश में कुल 2547 वन ग्राम हैं। किसी भी वन ग्राम को राजस्‍व ग्राम में नहीं बदला गया है। असल में छह राज्यों ने वन ग्रामों को राजस्व गावों में बदलने के लिए 73 प्रस्ताव केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के पास भेजे हैं। इसके लिए करीब 2.71 लाख हेक्टेयर वन भूमि को अनारक्षित करना पड़ेगा। केंद्र ने अब तक 511 वन ग्रामों को राजस्‍व ग्रामों में बदलने के लिए 40,986.81 हेक्‍टयर वन भूमि को अनारक्षित करने की सैद्धांतिकऔरऔर भी

राजस्थान में विकास से संबंधित 29 परियोजनाएं केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय में मंजूरी के लिए अटकी पड़ी हैं। पर्यावरण व वन राज्‍यमंत्री जयंती नटराजन ने राज्‍य सभा में खुद बताया कि 30 जून 2011 तक राजस्‍थान की सिंचाई, बिजली, खनन व भवन निर्माण जैसे क्षेत्रों की कुल 29 परियोजनाएं मंत्रालय में पर्यावरणीय मंजूरी के लिए लंबित हैं। मंगलवार को उन्होंने एक लिखित उत्तर में बताया कि राजस्‍थान सरकार की कुल 121 विकास संबंधी परियोजनाओं को पर्यावरण व वनऔरऔर भी

उड़ीसा के जगतसिंह पुर जिले में दक्षिण कोरियाई कंपनी पोस्को की प्रस्तावित इस्पात परियोजना का हश्र पश्चिम बंगाल में टाटा की सिंगूर परियोजना जैसा होता दिखाई दे रहा है। अपनी भूमि दे चुके किसानों को उचित मुआवजा देने और अन्य शर्तो को पूरा करने की मांग पर अड़े स्थानीय निवासियों ने सड़क व रेलमार्ग रोक दिया है। इससे मंगलवार को तीसरे दिन भी पोस्को परियोजना का काम-काज बंद रहा। उधर कोलकाता से मिली खबर के अनुसार माओवादियोंऔरऔर भी

पर्यावरण मंत्रालय की एक विशेषज्ञ आकलन समिति (ईएसी) ने पुणे के पास 2000 हेक्टेयर में बन रही लवासा की पर्वतीय नगर परियोजना के पहले चरण के लिए सशर्त मंजूरी देने की सिफारिश की है। लवासा परियोजना हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी (एचसीसी) की है। इसके लिए उसने लवासा कॉरपोरेशन नाम की सब्सिडियरी बना रखी है। एचसीसी के चेयरमैन व प्रबंध निदेशक अजित गुलाबचंद ने शुक्रवार को मुंबई में शेयरधारकों की सालाना आमसभा (एजीएम) को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘हमऔरऔर भी

पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि निरमा इंडस्ट्रीज का भावनगर, गुजरात में प्रस्तावित सीमेंट संयंत्र पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्र में स्थित है और इसे यहां से स्थानांतरित करना पड़ेगा। मंत्रालय ने एक हलफनाफा दायर करके सुप्रीम कोर्ट को बताया कि यह संयंत्र ए-जोन में स्थित है जहां मीठे पानी के स्रोत हैं। इसके अलावा मंत्रालय ने कहा कि विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट के अनुसार यह संयंत्र पर्यावरण के लिहाज सेऔरऔर भी

केंद्रीय वन व पर्यावरण मंत्रालय के ताजा निर्णय से दक्षिण कोरिया की इस्पात कंपनी पॉस्को की उड़ीसा परियोजना का भविष्य एक बार फिर अधर में लटक गया है। लेकिन उड़ीसा सरकार को विश्वास है कि 52,000 करोड़ रुपए की यह परियोजना किसी न किसी दिन परवान जरूर चढ़ेगी। पर्यावरण मंत्रालय ने इस परियोजना के लिए वन संबंधी मंजूरी को रोक दिया है। उड़ीसा के इस्पात व उद्योग मंत्री रघुनाथ मोहंती का मानना है कि पॉस्को की यहऔरऔर भी

केंद्र सरकार ने कहा है कि स्टील अथारिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) ने झारखंड में चिरिया खदानों को विकसित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इस्पात मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा ने सोमवार को लोकसभा को बताया कि सेल ने विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने के लिए वैश्विक सलाहकार नियुक्त किए हैं। उन्होंने बताया कि परियोजना रिपोर्ट तैयार करने का काम आस्ट्रेलिया की फर्म हैच एसोसिएट्स को दिया गया है। मंत्री ने बताया कि पर्यावरण व वनऔरऔर भी

उड़ीसा सरकार दक्षिण कोरिया की कंपनी पोस्को की प्रस्तावित इस्पात परियोजना को अंतिम मंजूरी मिलने के प्रति पूरी तरह आश्वस्त है। राज्य सरकार ने कहा है कि वह इस परियोजना पर वन अधिकार कानून-2006 को ढंग से लागू करने के संबंध में एकाध दिन में पर्यावरण व वन मंत्रालय को आश्वासन पत्र सौंप देगी। उड़ीसा के मुख्य सचिव बिजय कुमार पटनायक ने सोमवार को संवाददाताओं को बताया, ‘‘हम जवाब के साथ तैयार हैं। राज्य सरकार तीन दिनऔरऔर भी

केंद्रीय वन व पर्यावरण मंत्रालय ने मंगलवार को बॉम्बे हाई कोर्ट को बताया कि वह विवादास्पद लवासा परियोजना पर अपना हलफनामा और अपने आदेश की प्रति अदालत के पास जमा करेगा। इस बीच सूत्रों के अनुसार मंत्रालय लवासा कॉरपोरेशन पर कुछ पेनाल्टी लगाकर लवासा सिटी प्रोजेक्ट को हरी झंडी दे सकता है। मंगलावर को सुबह मंत्रालय की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल डेरियस खंबाटा ने न्यायमूर्ति वी सी डागा और न्यायमूर्ति राजेश केतकर की खंडपीठ को बतायाऔरऔर भी

पर्यावरण मंत्रालय की एक समिति ने टाटा स्टील को साफ तौर पर कहा है कि झारखंड के कोयला समृद्ध क्षेत्र में प्रस्तावित उसकी इस्पात संयंत्र परियोजना को तब तक मंजूरी नहीं दी जाएगी जब तक उसे कोयला मंत्रालय से मंजूरी नहीं मिल जाती। ताप बिजली व कोयला खदान परियोजना के पर्यावरण प्रभाव को परखने के लिए बनी विशेषज्ञ आकलन समिति ने हाल ही में एक बैठक में यह शर्त रखी है कि टाटा समूह की कंपनी कोऔरऔर भी