जो लोग सच को सूत्रों में फिट करते हैं, वर्तमान को पूरी जटिलता के साथ समझे बगैर ही बदलने की बात करते हैं, वे कोरे लफ्फाज़ हैं, क्रांतिकारी नहीं। वे समाज की चक्रवाती भंवर से निकले झाग हैं। उनसे किसी सार्थक काम की उम्मीद बेमानी है।और भीऔर भी