खबर यकीकन शेयर बाज़ार और संबंधित शेयरों के लिए अहमियत रखती है। लेकिन बनने से लेकर हमारे पास पहुंचने तक वो गुल खिला चुकी होती है। उस पर खेलनेवालों की तेज़ी को हम मात नहीं दे सकते है। इसलिए खबर हमारे जैसे आम निवेशकों का ट्रेडिंग टूल कतई नहीं बन सकती। जिस दिन बड़ी खबर हो, उस दिन बाज़ार से दूर रहना बेहतर। बासी खाना और बासी खबर हमारे लिए त्याज्य है। देखें अब बुध का बाज़ार…औरऔर भी

हम मानते हैं कि जितना रिस्क, उतना रिवॉर्ड। ज्यादा रिस्क, ज्यादा फायदा। दिक्कत यह है कि फायदे की सोच में मगन होकर हम भूल जाते हैं कि ज्यादा रिस्क में पूंजी डूबने का खतरा भी ज्यादा होता है। वहीं ट्रेडिंग में भयंकर रिस्क की बात कही जाती है। लेकिन प्रोफेशनल ट्रेडर की खूबी होती है कि वो वही सौदे करता है जिसमें न्यूनतम रिस्क में अधिकतम फायदे की प्रायिकता सबसे ज्यादा होती है। अब शुक्र की ट्रेडिंग…औरऔर भी

आप कितने ही मजबूत हों, आठ-दस लोग मिलकर दबाने लगें तो आपके घुटने मुड़ ही जाएंगे। भीड़ भले ही जाहिल हो, लेकिन आप उसकी ताकत का मुकाबला नहीं कर सकते। भीड़ बनाती है ट्रेंड। इसलिए ट्रेडिंग करते वक्त कभी ट्रेंड के खिलाफ न जाएं। रुझान ऊपर का हो तो खरीदें, अन्यथा किनारे खड़ें रहें। शॉर्ट कभी न करें। भीड़ से डरें नहीं। उसके साथ चलना जरूरी नहीं, लेकिन उसके खिलाफ कभी न जाएं। अब रुख बाज़ार का…औरऔर भी

तीसरी कसम फिल्म आपने देखी होगी या रेणु की यह कहानी शायद पढ़ी हो। इसमें सीधा-साधा नायक दुनिया के जंजाल से बचने के लिए तीन बार कसम खाता है। एक ऐसी ही कसम हम सभी को खानी होगी कि शेयर बाज़ार के ऑपरेटरों की बात पर कभी भी यकीन नहीं करेंगे। वे हमेशा अपने फायदे की सोचते हैं। शातिर ठग होते हैं। इसलिए उन्हें दूर से ही सलाम। खुले दिमाग से अब रुख करते हैं बाज़ार का…औरऔर भी

सार्वजनिक अस्पतालों को चलाने के लिए सरकार को सब्सिडी देनी पड़ती है, जबकि निजी अस्पताल महंगे होने के बावजूद लोगों से पटे रहते हैं और करोड़ों का मुनाफा कमाते हैं। यह मानसिकता और पद्धति का सवाल है। ब्रिटेन में सब्सिडी चलती है तो हेल्थकेयर सिस्टम पिटा पड़ा है। जर्मन में स्वास्थ्य बीमा चलता है तो हेल्थकेयर सिस्टम चकाचक है। भारत में सब घालमेल है। लेकिन ‘जान है तो जहान है’ और परिजनों के लिए कुछ भी करनेवालेऔरऔर भी