मौजूदा परिस्थिति में शेयर बाज़ार के लम्बे निवेशक के सामने क्या रास्ता है? इसका पहला जवाब तो यह कि एफडी या सरकारी बॉन्डों में आधी बचत लगा देने के बाद बाकी रकम का बड़ा हिस्सा म्यूचुअल फंडों की इक्विटी स्कीमों में एसआईपी (सिस्टेमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान) के ज़रिए लगाएं। फिर भी सीधे स्टॉक्स में लगाना है तो ऊंचे स्तर की मजबूत कंपनियों के शेयर कम भाव पर खरीदें। जो मूलतः कमज़ोर कंपनियां हों, किसी भी वजह से घाटेऔरऔर भी

शेयर बाज़ार अभी जिस तरह थोड़ा-थोड़ा गिर रहा है, उसे करेक्शन कहते हैं। 24 फरवरी को यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद छह ट्रेडिंग सत्रों में निफ्टी-50 सूचकांक 4.79% गिर चुका है। हो सकता है कि अगले कुछ हफ्तों में 10-12% गिर जाए। करेक्शन के ऐसे दौर में निवेशक घबरा जाते हैं। वे अपनी सारी योजना छोड़ मैदान से भागने लगते हैं। कुछ बाज़ार की सवारी करने का दम भरते हैं और उससे आगे निकलने कीऔरऔर भी

युद्ध जारी है। रूस यूक्रेन में अपनी समर्थक सरकार बनाए बिना पीछे नहीं हटनेवाला। नाटो ने भी टैंक भेजने शुरू कर दिए हैं। अब शेयर बाज़ार का क्या होगा? पहले दिन जमकर गिरा। अगले दिन उठ गया। अब क्या होगा? गिरेगा या उठेगा! लेकिन हां या ना, सही या गलत और कंप्यूटर की भाषा में कहें तो शून्य व एक की बाइनरी अलावा भी दुनिया में बहुत होता है। सोचने की आसानी से लिए यकीनन यह तरीकाऔरऔर भी

एक बात हमें अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि न तो अपने यहां देखभाल करनेवाला समाज है और न ही सरकार। हर कोई स्वार्थ का पुतला है। सरकार भी चंद निहित स्वार्थों की सेवा में लगी है। सबका साथ, सबका विकास महज अवाम को झांसा देने का नारा है। सबका विश्वास भी चरका पढ़ाकर हासिल किया जाता है। हमें अपना हित खुद समझना और हासिल करना है। शेयर बाज़ार पर भी यह बात पूरी तरह लागू होतीऔरऔर भी

शेयर बाज़ार के निवेशकों में ब्लूचिप-ब्लूचिप की बड़ी चर्चा होती है। भाव यह होता है कि ऐसी कंपनियों के निवेश में कोई रिस्क नहीं है। एक बार ले लो। फिर ज़िंदगी भर वे आपको रिटर्न देती रहती हैं। लेकिन यह एक भयंकर भ्रम है। रिस्क ब्लूचिप कंपनियों में भी भरपूर होता है। कल की ब्लूचिप कंपनी को खाक बनते देर नहीं लगती। इसलिए ब्लूचिप के पीछे भागने से अच्छा है कि ऐसी कंपनी चुनो जिसके बिजनेस मेंऔरऔर भी

दुनिया भर के शेयर बाज़ारों के शीर्ष सूचकांकों में हमेशा उस वक्त की अच्छी से अच्छी कंपनियां रखी जाती हैं। कोई कंपनी आज है, हो सकता है कि पांच साल बाद न रहे। साल 1991 में सेंसेक्स में जो कंपनियां थी, 2001 आते-आते उनमें से 18 यानी 60% बदल दी गईं। निफ्टी-50 सूचकांक में तो जैसे 40% कंपनियां एक निश्चित अंतराल के बाद बदल देने का रिवाज़-सा बना हुआ है। इससे एक सबक तो यह है किऔरऔर भी

जैसे ‘हीरा सदा के लिए’ होता है, उसी तरह इन्फोसिस, रिलायंस इंडस्ट्रीज़, एचडीएफसी, टाटा एलेक्सी, लार्सन एंड टुब्रो, आईटीसी, हिंदुस्तान यूनिलीवर, डॉ. रेड्डीज़ लैबोरेटरीज़, मारुति सुज़ुकी और क्रिसिल जैसी कंपनियां हमेशा के लिए होती हैं। लेकिन शेयर बाज़ार में ऐसी कंपनियों की संख्या 40-50 से ज्यादा नहीं होतीं। बाकी हज़ारों कंपनियों से भरपूर मुनाफा कमाकर निकल ही लेना चाहिए। दिक्कत यह है कि बराबर बढ़ते भावों वाली कंपनियों के शेयर हम बेचकर निकल नहीं पाते क्योंकि हमेशाऔरऔर भी

शेयर बाजार के बारे में सूक्तियों की कोई कमी नहीं। कहते हैं कि आप आजीविका के लिए जो करते हैं, उससे आय हासिल कर सकतें है, लेकिन दौलत इक्विटी या शेयरों में निवेश से बनाई जाती है। सफलतम निवेशक वॉरेन बफेट का मशहूर कथन है, “किताबी ज्ञान से महान निवेशक बनते तो सारे के सारे लाइब्रेरियन आज खूब अमीर होते।” निवेश करना सरल है। न किताबी ज्ञान, न कोई भारी-भरकम डिग्री। कोई भी डिमैट एकाउंट खोलकर निवेशऔरऔर भी

कंपनी का बिजनेस भी बम-बम कर रहा हो और शेयर के भाव भी दबे हुए हों – ऐसी आदर्श स्थिति बहुत कम आती है। आमतौर पर शानदार बिजनेस कर रही कंपनी के शेयर सस्ते नहीं मिलते, जबकि डूबते शेयर भावों वाली कंपनियों के बिजनेस में दमखम नहीं होता। कारण यह है कि शेयर बाज़ार में निवेश को आतुर लोग कम से कम लाखों में हैं और अधिकांश लोगों के पास इफरात धन के साथ-साथ थोड़ी-बहुत पारखी नज़रऔरऔर भी

कंपनी कितनी भी अच्छी हो, बिजनेस मॉडल कितना भी जानदार हो, लेकिन उसके शेयर को किसी भी भाव पर खरीद लेना सही नहीं होता। मसलन, जुबिलैंट फूडवर्क्स का धंधा जमा-जमाया है। एवेन्यू सुपरमार्ट्स (डी-मार्ट) का भी बिजनेस मॉडल जबरदस्त है। लेकिन जब निफ्टी 24.75 और सेंसेक्स 28.48 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है, तब जुबिलैंट फूडवर्क्स का शेयर 118.40 और डी-मार्ट का शेयर 223.04 के पी/ई अनुपात पर खरीदना नादानी ही नहीं, पागलपन है। शेयरऔरऔर भी