साझा चूल्हा
2011-11-25
ज़िंदगी हमारी अपनी है। पर धरती हम साझा करते हैं। हवा-धूप साझा करते हैं। दुनिया साझा करते हैं। देश साझा करते हैं। प्रशासन व राजनीतिक तंत्र साझा करते हैं। जो साझा है, उसकी भी तो फिक्र जरूरी है। और भीऔर भी
कहां की नैतिकता!
2010-09-22
नैतिकता आसमान से नहीं टपकती। मूल्य हवा से नहीं आते। सामाजिक व्यवस्था को चलाने के लिए कानून बनाए जाते हैं। यही कानून जब व्यापक स्वीकार्यता हासिल कर लेते हैं तो नैतिक मू्ल्य बन जाते हैं।और भीऔर भी