शुक्रवार को डर था कि आज कहीं काला सोमवार न हो जाए। लेकिन आज तो पूरा परिदृश्य ही बदला हुआ था क्योंकि इटली के अखबार में छपी एक खबर के मुताबिक आईएफएम ने कह दिया कि इटली को संकट से निकालने के लिए वो वित्तीय मदद देने को तैयार है। हालांकि बाद में आईएमएफ के प्रवक्ता ने इसका खंडन कर दिया। खैर, इस दरम्यान हमारे उस्ताद लोग इसे यूरोप के संकट में राहत बताकर बाजार को चढ़ानेऔरऔर भी

इसमें कोई दो राय नहीं कि विश्वास के संकट ने बाजार के मिजाज पर चोट की है। इसका बेड़ा एसबीआई के आंकड़ों ने और गरक कर दिया। इस वक्त बाजी मंदड़ियों के हाथ में है और उनका सूत्र है – हर बढ़त पर बेचो। वे अपने मकसद में कामयाब भी हुए जा रहे हैं। यह कहानी बार-बार दोहराई जा रही है। लकिन बाजार के ऊपर पहुंचने पर मंदड़िए टेक्निकल कॉल्स की वजह से भारी बिकवाली नहीं करऔरऔर भी

उत्तर प्रदेश के दशहरी और दूसरे किस्मों के आम के शौकीन लोगों को इस बार ‘फलों का राजा’ खरीदने के लिए अपनी जेब ज्यादा ढीली करनी पड़ेगी क्योंकि प्रतिकूल हालात की वजह से इस मौसम में आम के उत्पादन में खासी गिरावट के आसार साफ नजर आ रहे हैं। उधर महाराष्ट्र में अलफांसों की तीन चौथाई से ज्यादा फसल बरबाद हो जाने की खबर पहले ही आ चुकी है। ऑल इंडिया मैंगो ग्रोवर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष इंसरामऔरऔर भी

सरकार ने देश में इस साल रिकॉर्ड 8.147 करोड़ टन गेहूं उत्पादन की उम्मीद जताई है और उसका मानना है कि इसका सकारात्मक असर आर्थिक परिदृश्य पर पड़ेगा। सरकार के दूसरे अग्रिम अनुमानों के अनुसार 2010-11 फसल वर्ष में गेहूं उत्पादन 8.147 करोड़ टन रहेगा जो रिकॉर्ड है। इसी तरह आलोच्य वर्ष में कुल खाद्यान्न उत्पादन छह फीसदी बढ़कर 23.207 करोड़ टन होने का अनुमान है। वर्ष 2009-10 में यह आंकड़ा 21.82 करोड़ टन था। बेहतर खाद्यान्नऔरऔर भी

रबी फसलों की बुवाई कहीं नमी की कमी से तो कहीं हाल की बारिश से बुरी तरह प्रभावित हुई है। इसी के चलते अभी तक रबी सीजन की बुवाई पिछले साल के मुकाबले अभी तक आधी भी नहीं हो पाई है। सबसे चिंताजनक स्थिति गेहूं बुवाई की है। इसका रकबा पिछले साल के मुकाबले सर्वाधिक 30 लाख हेक्टेयर तक पीछे है। बुवाई में विलंब होने से गेहूं की उत्पादकता पर विपरीत असर पडऩे का खतरा है। इसेऔरऔर भी

हमारी दो-तिहाई खेती अब भी मानसून आधारित है। मौसम और मानसून खराब हुआ तो इन इलाकों की सारी फसल चौपट हो जाती है, किसान बरबाद हो जाते हैं। सरकार ने कहने को राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना (एनएआईएस) चला रखी है। मौसम आधारित फसल बीमा योजना (डब्ल्यूबीसीआईएस) भी है। इसके लिए मौसम के सही आंकड़ों का होना जरूरी है। लेकिन अभी स्थिति यह है कि देश में कुल 14.10 लाख हेक्टेयर जमीन में खेती की जाती है, जबकिऔरऔर भी