सफलता की सोच
दुनिया में कुछ भी स्थाई नहीं। न मौसम और न ही सरकार। ज़िंदगी में भी कुछ स्थाई नहीं। न सुख और न ही दुख। सब कुछ निरंतर बदलता रहता है। इसलिए जीवन में सफलता से आगे बढ़ने का एक ही तरीका है कि हम इस सच को स्वीकार कर लें।और भीऔर भी
पत्थर और प्राणी
पत्थर में न तो इच्छा होती है और न द्वेष। उसे न सुख होता है, न दुख। न ही पत्थर अपना रूप बनाए रखना चाहता है, जबकि ये अनुभूतियां ही प्राणियों की पहचान और उनके जीवन का मूल तत्व हैं।और भीऔर भी
एकतरफा प्यार
अच्छा काम किया जाए और उसका प्रचार न किया जाए तो वह एकतरफा प्यार जैसा है जिसका अंत दुख, अफसोस और एकाकीपन में ही होता है। अरे! सामने वाले को पता तो चले कि आप उससे प्यार करते हैं।और भीऔर भी
सत्ता का प्रताप
सत्ता मिलते ही मरतक नेताओं तक के चेहरे चमकने लगते हैं, स्वास्थ्य दमकने लगता है, आयु बढ़ जाती है। सत्ता का यही प्रताप है। जनता को भी सत्ता दे दी जाए तो उसका भी सारा दुख-दारिद्र मिट सकता है।और भीऔर भी
ज़माने की जीत
जीत का मतलब यही क्यों होता है कि हम कितनों को पीछे छोड़ आगे निकल गए? जीत का मतलब यह क्यों नहीं होता कि कितने लोगों के साथ हमारा दिल धड़कता है, कितनों का दुख हमें अपना लगता है?और भीऔर भी
दुख शाश्वत है
बदलाव शाश्वत है। इसलिए दुख भी शाश्वत है क्योंकि बदलाव से यथास्थिति में मौज कर रहे लोगों को दुख होता है। बदलने वाले भी कष्ट पाते हैं। लेकिन नए की भावना उनकी सारी पीड़ा हर लेती है।और भीऔर भी
हँस के बोला करो, बुलाया करो…
जो चला गया, उसका गम क्या? वह चाहे हादसा था या प्रकृति का चक्र, हम उसे रोकने की बात तो दूर, छू तक नहीं सकते। इसलिए जिसका जितना साथ है, हंस बोल कर ही बिताना चाहिए ताकि कोई मलाल न रहे।और भीऔर भी