यह वाकई बहुत बुरी बात है कि बिजनेस चैनल अब दर्शकों की भावनाओं के साथ खेलने लगे हैं। एक बिजनेस चैनल और उससे जुड़ी समाचार एजेंसी ने खबर फ्लैश कर दी कि सरकार पेट्रोलियम तेलों पर फिर से नियंत्रण कायम करने जा रही है। कितनी भयंकर बेवकूफी की बात है? सुधारों को पटलने का सवाल कहां उठता है? यह तो तभी हो सकता है जब सीपीएम केंद्र सरकार की लगाम थाम ले! स्वाभाविक रूप से पेट्रोलियम मंत्री को आगे बढ़कर इसका खंडन करना पड़ा।
फिर उसी बिजनेस चैनल ने एक नई खबर फेंक दी कि इंडियन ऑयल, बीपीसीएल और एचपीसीएल जैसी तेल मार्केटिंग कंपनियां (ओएमसी) पेट्रोल के दाम नहीं बढ़ाएंगी। हां, ऐसा जरूर हो सकता है। लेकिन इसमें सरकार का नुकसान कहां है क्योंकि पेट्रोल से तो पिछले साल जून से ही मूल्य नियंत्रण हटाया जा चुका है? इसलिए अगर नुकसान हुआ भी तो ओएमसी का होगा। यह गिलास को आधा खाली देखने का नजरिया है जिस पर आपको अपनी राय खुद बनानी है।
मेरी बात बिलकुल सीधी-साधी है। भारत और चीन की पेट्रोलियम तेल जरूरतों का बंदोबस्त कर रखा है। अमेरिका के पास अपनी जरूरत भर से 11 फीसदी ज्यादा कच्चा तेल है। असल में भारत ने सचेत रूप से पिछले एक साल या उससे भी पहले से तय कर रखा है कि हर दिन खरीदे जानेवाले 30 लाख बैरल कच्चे तेल में से वह 8 लाख टन बचाकर रखता जाएगा। ऐसी ही नीति चीन ने अपना रखी थी। बस, वह रोज की 90 लाख बैरल खरीद में से 30 लाख बैरल का रिजर्व रखता रहा है। परिणामस्वरूप, भारत के पास 92 दिनों और चीन के पास 180 दिनों की जरूरत भर का कच्चा तेल है। इन दोनों देशों का औसत खरीद मूल्य 80 डॉलर प्रति बैरल रहा है। भारत ने अंतरराष्ट्रीय बाजार से तेल खरीदना बंद कर रखा है क्योंकि उसके पास इससे ज्यादा तेल रखने की क्षमता नहीं है। चीन ने भी फिलहाल विश्व बाजार से तेल खरीदना बंद कर दिया है।
इसलिए न तो भारत और न ही चीन मिस्र और लीबिया के राजनीतिक संकट से अचानक तेल की कीमतों में आए उछाल से प्रभावित हुए हैं। हो सकता है कि तेल रिजर्व की पर्याप्त स्थिति के मद्देनजर केंद्र सरकार ने तेल कंपनियों से कहा हो कि वे पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत और न बढ़ाएं क्योंकि इससे मुद्रास्फीति पर नकारात्मक असर पड़ेगा। लेकिन इसे पेट्रोलियम तेलों पर फिर से नियंत्रण कायम करना नहीं कहा जा सकता।
दरअसल, मेरी मजबूत धारणा है कि पिछली दो तिमाहियों में तेल मार्केटिंग कंपनियों (ओएमसी) ने जिस तरह के शानदार नतीजे हासिल किए हैं, वे भारी भंडार के चलते चौथी तिमाही में भी दोहराए जाएंगे। सार्वजनिक क्षेत्र की इन कंपनियों के पास विशाल इनवेंटरी है। हमें अपने अध्ययन से पता चला है कि अप्रैल से दुनिया में कच्चे तेल की सप्लाई 60 लाख बैरल रोजाना बढ़ रही है। इससे सप्लाई मांग से ज्यादा हो जाएगी और इसलिए कच्चे तेल की कीमतें नीचे आ जाएंगी।
कल 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले में एफआईआर दाखिल होनी है और तमाम रहस्य बेपरदा हो जाएंगे। दरअसल, डीएमके और कांग्रेस के बीच सीटों के बंटवारे का झगड़ा इसी एफआईआर की छाया में निपटाया गया है। मुद्रास्फीति की दर घटते-घटते सामान्य स्तर पर आ रही है। कच्चा तेल भी लाइन पर आ जाएगा। इसके बाद दलाल स्ट्रीट पर जो बच जाएगा, वो है ऊर्जा से भरे खिलाड़ी जो बाजार को डाउनग्रेड करने में सारी ताकत झोंक देंगे। लेकिन इसमें कुछ नया नहीं है क्योंकि वे सालोंसाल से ऐसा ही करते रहे हैं।
मॉरन स्टैनले ने रिपोर्ट जारी की है कि 2011-12 में भारतीय अर्थव्यवस्था (जीडीपी) में 9 फीसदी वृद्धि का सरकारी दावा झूठा है और जीपीडी की विकास दर घटकर 7.7 फीसदी पर आ जाएगी। कितनी बुद्धिमत्ता की बात है? दूसरे फंड हाउस कुछ नहीं मिला तो टेक्निकल विश्लेषण का सहारा लेकर दावा किया है कि बाजार गिरकर 4700 पर चला जाएगा और वो भी इसी मार्च महीने में।
लेकिन दूसरी तरफ जमीनी हकीकत यह है कि बी ग्रुप के बहुत सारे स्टॉक्स में अच्छी खरीद शुरू हो चुकी है। यहां तक कि ए ग्रुप के अच्छे व सस्ते शेयरों में काफी खरीद होने लगी है। थोड़े में कहूं तो ट्रेडरों और निवेशकों में गलत धारणा भरने की कोशिश की जा रही है ताकि वे बाजार से दूर ही बने रहें।
रोशनी की एक किरण भी अंधेरे के पहाड़ को चीर देने के लिए काफी होती है। इसी तरह सच का एक तिनका भी झूठ के पहाड़ पर भारी पड़ता है।
(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। यह कॉलम मूलत: सीएनआई रिसर्च से लिया जा रहा है)