सतह पर छिछली, असल में लगी डुबकी

इस बार की आर्थिक समीक्षा में बताया गया है कि वित्त वर्ष 2023-24 में वेतनभोगी व स्वरोजगार में लगे पुरुष व महिला, दोनों ही श्रमिकों का असल मासिक वेतन कोरोना महामारी के दो साल पहले के वित्त वर्ष 2017-18 के स्तर से भी कम रहा है। असल स्थिति सतही या नॉमिनल स्थिति से मुद्रास्फीति का असर मिटाकर निकाली जाती है। आर्थिक समीक्षा में बताया गया है कि 2017-18 में पुरुष श्रमिक का असल औसत मासिक वेतन ₹12,665 था जो 2023-24 में 6.4% घटकर ₹11,858 रह गया। इसी दौरान महिला श्रमिक का औसत मासिक वेतन ₹10,116 से 12.5% घटकर ₹8855 पर आ गया। इसी अवधि में स्वरोजगार में लगे पुरुष श्रमिक का औसत मासिक वेतन ₹9454 से 9% घटकर ₹8591 और महिला श्रमिक का औसत मासिक वेतन ₹4348 से 32% घटकर ₹2950 रह गया। वहीं, 2023-24 में देश के कॉरपोरेट क्षेत्र का मुनाफा 22.3% बढ़कर 15 साल के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गया, जबकि वहां रोज़गार महज 1.5% बढ़ा। फिर भी व्यक्तिगत करदाता पांच साल से कॉरपोरेट क्षेत्र से ज्यादा टैक्स दे रहा है। यह संरचनात्मक असंतुलन को दर्शाता है। ऊपर से जीडीपी की असल विकास दर डूबती ही जा रही है। अब शुक्रवार का अभ्यास…

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