इस समय केंद्र में सत्तारूढ़ दल पर जनधन को लूटने की अंधी हवस सवार है। वो बड़े राज्यों ही नहीं, छोटे राज्यों व केंद्र-शासित क्षेत्रों तक में येन-केन प्रकारेण सरकार बनाने में लगी रहती है। जहां धार्मिक ध्रुवीकरण या धांधली व गुंडागर्दी से चुनकर सत्ता में नहीं आती, वहां विधायकों की खरीद-फरोख्त से सरकार बना लेती है। लेकिन उसका यह राजनीतिक चरित्र देश की अर्थनीति के लिए घातक बनता जा रहा है। देश की अर्थव्यवस्था इस समय भीषण संरचनात्मक असंतुलन से गुजर रही है। इसके बारे में मोदी सरकार के ही मुख्य आर्थिक सलाहकार रह चुके अरविंद सुब्रमण्यन जैसे तमाम अर्थशास्त्री आगाह करते रहे हैं। इस बार की आर्थिक समीक्षा तक में भी इस तरफ इशारा किया गया है। लेकिन बजट में इस असंतुलन को दूर करने की कोई सोच तक नहीं दिखती। इस संतुलन की झलक इस तथ्य में देखी जा सकती है कि देश में दस लाख रुपए तक की कारों के सेगमेंट का हिस्सा 2014-15 में कुल कारों की बिक्री में 73% हुआ करता था। घटते-घटते यह हिस्सा 2019-20 तक 65% और 2024-25 की पहली छमाही तक मात्र 46% पर आ गया। सितंबर 2024 की छमाही में मारुति सुज़ुकी की मिनी व कॉम्पैक्ट कारों की बिक्री 2017-18 से भी कम रही। देश में बहुत कम लोगों की आय बढ़ रही है। एक दिन उनकी आय ज्यादा बढ़ जाती है तो वे भारत छोड़ कहीं और जाकर बस जाते हैं। बजट ने इस असंतुलन को बढ़ाने का काम किया है, घटाने का नहीं। अब गुरुवार की दशा-दिशा…
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