श्रेय की राजनीति से रिश्ता अर्थनीति का!

बजट की झांकी निकल गई। अब आम चुनावों की रैलियां निकलने लगी हैं। प्रधानमंत्री कहते हैं कि अयोध्या में राम मंदिर बनने से पीढ़ियों का इंतज़ार खत्म हुआ। उन्होंने 17वीं लोकसभा का अंतिम सत्र राम के नाम कर दिया। दरअसल, राम को घोड़ा बनाकर भाजपा चुनावों का अश्वमेध यज्ञ पूरा करना चाहती है। लेकिन उसे भरोसा नहीं कि राम का सिक्का कितना चल पाएगा। इसीलिए 2004 से 2014 तक कांग्रेस के राज में अर्थव्यवस्था के हाल पर श्वेत-पत्र ले आया गया। जिन दस सालों में देश का जीडीपी औसतन 7.5% की सालाना दर से बढ़ा था, उसे काला अध्याय बता दिया और 2014 से 2024 के जिन दस सालों में जीडीपी औसतन 5.7% की सालाना दर से बढ़ा है, उसे स्वर्णिम काल कहा जा रहा है। इसे खींचकर अमृतकाल बना दिया है और सीधे 2047 में भारत को विकसित देश बनाने का सपना बेचा जा रहा है। जुलाई में आईएमएफ ने हिसाब लगाया था कि 2027 तक भारत दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। फिर दिसंबर में एस एंड पी ग्लोबल की रिपोर्ट आई कि ऐसा 2030 तक हो जाना पक्का है। इस तरह जो किसी न किसी तरह से हो ही जाना है, उसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने तीसरे कार्यकाल का गारंटी बनाकर पेश कर दिया है। आखिर श्रेय लेने की यह राजनीति देश की अर्थनीति को कहां ले जाएगी? अब सोमवार का व्योम…

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