तकरीबन सारे अर्थशास्त्री, बैंकर व जानकार यही मानते हैं कि मंगलवार, 25 अक्टूबर को रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति की दूसरी तिमाही समीक्षा में ब्याज दरों को चौथाई फीसदी और बढ़ा देगा। रेपो दर को 8.50 फीसदी, रिवर्स रेपो दर को 7.50 फीसदी और तदनुसार एमएसएफ की दर को 9.50 फीसदी कर देगा। लेकिन वित्त मंत्रालय के कुछ सूत्रों का कहना है कि इस बार माहौल को खुशगवार बनाने के लिए रिजर्व बैंक ब्याज दरें बढ़ाने से बाज आ सकता है। वह सारी दरों को जस का तस रख सकता है। मार्च 2012 तक मुद्रास्फीति के अनुमान को 7 फीसदी पर यथावत रखा जाएगा। लेकिन चालू वित्त वर्ष 2011-12 में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में वृद्धि का अनुमान 8 फीसदी से घटाकर 7.7 फीसदी कर दिया जाएगा।
हालांकि जिस तरह रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति तैयार करता है, उसमें घोषणा से पहले उसमें उठाए जानेवाले कदमों के बारे में कुछ भी कहना कयासबाजी ही होगी। लेकिन वित्त मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार शुक्रवार 21 अक्टूबर को राजधानी दिल्ली में रिजर्व बैंक गवर्नर डी सुब्बाराव और वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी की मुलाकात में इस बात पर सहमति बनी है कि इस बार ब्याज दरों को न बढ़ाया जाए। यह मुद्दा भी उठा कि पिछले 18 महीनों में 12 बार ब्याज बढ़ाने के बावजूद अगर मुद्रास्फीति पर लगाम नहीं लग सकी तो 13वीं बार बढ़ा देने से क्या कमाल हो जाएगा? इसके बजाय जिस तरह से रुपया डॉलर के सापेक्ष गिरता-गिरता 50 रुपए तक पहुंच गया है, उसने महंगाई में और पलीता लगा दिया है।
दूसरी तरफ जहां ब्याज दरें बढ़ने से आम लोगों की लघु बचत बैंकों की जमा बढ़ाने लगी है, वहीं इससे सरकार के धन का एक स्रोत कमजोर गया है और उसे बाजार से ज्यादा उधार लेना पड़ रहा है। इससे फिर ब्याज दरें बढ़ गई हैं क्योंकि बांडों के दाम घट गए हैं। रिजर्व बैंक के कदमों का असर यह भी हुआ है कि अगस्त में औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर या आईआईपी सूचकांक में वृद्धि मात्र 4.1 फीसदी पर आ गई है। सरकार का तर्क है कि अच्छे मानसून का असर दिसंबर तक खाद्य मुद्रास्फीति के कम होने में दिखने लगेगा। दुनिया में जिंसों के दाम घट रहे हैं। लेकिन रुपए के कमजोर होने से भारत में उसका असर नहीं पड़ रहा है। इसलिए रिजर्व बैंक अगर बाजार में डॉलर डालकर रुपए को उठाता है तो हमारी आयात लागत कम हो सकती है और महंगाई का असर कम हो सकता है। वैसे भी हमारे पास 317.50 अरब डॉलर का अच्छा-खासा विदेशी मुद्रा भंडार है।
असल में इस समय रिजर्व बैंक के लिए मुद्रास्फीति से बड़ी समस्या सरकार के ऋण का इंतजाम करना है। सरकार को अक्टूबर से मार्च 2012 के बीच बाजार से 52,800 करोड़ रुपए का ज्यादा ऋण जुटाना है। 15,000 करोड़ रुपए के बांडों की नीलामी इसी हफ्ते शुक्रवार 28 अक्टूबर को होनी है। दस दिन पहले 14 अक्टूबर को हुई 13,000 करोड़ रुपए के बांडों की नीलामी पूरी तरह सफल नहीं हुई थी और 4038 करोड़ रुपए की भरपाई अंडरराइटरों को करनी पड़ी थी।