शेयर बाज़ार में पुराने किस्म के अधिकांश ट्रेडर भावों को भगवान मानते हैं। यह रिटेल ट्रेडर के नज़रिए से एक हद तक सही भी है क्योंकि भावों पर उनका कोई वश नहीं होता। जिस तरह दरिया में दो-चार जग ही नहीं, कई बाल्टी भी पानी डाल देने से कोई फर्क नहीं पड़ता, उसी तरह रिटेल ट्रेडरों की खरीद-फरोख्त का शेयरों के भाव पर कोई खास असर नहीं पड़ता। फर्क पड़ता है बांध का पानी खोलने से। मुश्किल यह है कि इस समय भले ही देश के तमाम हिस्सों में बाढ़ का पानी कहर बरपा रहा हो, बांध हदें तोड़कर उफान पर हों, लेकिन शेयर बाज़ार में धन का सूखा पड़ा हुआ है। हमेशा याद रखें कि शेयरों के भाव तब चढ़ते हैं, जब उनके पीछे धन का प्रवाह बढ़ जाता है और भाव तब गिरते हैं, जब उनसे भारी मात्रा में धन निकलने लगता है। अब बुधवार की बुद्धि…
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