देश की राजनीति की दशा-दिशा तय करनेवाले राज्य उत्तर प्रदेश की 16वीं विधानसभा के चुनाव नतीजे मंगलवार को दोपहर तक साफ हो जाएंगे। लेकिन इससे पहले ही सत्ता के सबसे प्रबल दावेदार दल, समाजवादी पार्टी (सपा) में बाप-बेटे का शीतयुद्ध खुलकर सामने आ गया है। हालांकि पार्टी की राज्य इकाई के अध्यक्ष और मुलायम के बड़े बेटे अखिलेश यादव ने कहा है कि पार्टी प्रमुख या उनके पिता मुलायम सिंह यादव ही राज्य के अगले मुख्यमंत्री होंगे। लेकिन बताते हैं कि उन्होंने ऐसा स्वेच्छा से नहीं, बल्कि बड़े तनाव व दबाव के तहत किया है। राजनीतिक प्रेक्षको का कहना कि उत्तर प्रदेश में पुरु और ययाति की पौराणिक कथा दोहराई जा रही है जहां पुरु ने अपनी युवावस्था अपने पिता ययाति को मांगने पर दे दी थी।
अखिलेश ने सोमवार को लखनऊ में मीडिया से बातचीत के दौरान कहा, ‘‘हमने पार्टी को कामयाब बनाने के लिए काफी कड़ी मेहनत की है और हमें सरकार बनाने के लिए जरूरी बहुमत मिलने की उम्मीद है।’’ पार्टी की तरफ से मुख्यमंत्री कौन होगा, इस सवाल पर उन्होंने कहा, ‘‘निर्वाचित विधायक ही तय करेंगे कि अगला मुख्यमंत्री कौन होगा।” लेकिन अगले ही वाक्य में खुद को संभालते हुए उन्होंने खटाक से कहा, “मेरा मानना है कि नेताजी (मुलायम सिंह यादव) सबकी पसंद हैं और वे ही मुख्यमंत्री होंगे।’’
राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि कायदे से सत्ता की बागडोर अखिलेश को ही मिलनी चाहिए क्योंकि उनकी वजह से पार्टी में नई जान आई है। जनभावना भी यही है। इसी भावना को भांपते हुए दो दिन पहले मुलायम के चचेरे भाई और सपा के महासचिव रामगोपाल यादव ने कहा था कि अखिलेश मुख्यमंत्री बने तो उन्हें अच्छा लगेगा। उन्होंने परोक्ष रूप से साइकिल पर चुनकर आनेवाले नए विधायकों को संकेत दिया था कि वे अखिलेश की ताजपोशी के लिए तैयार रहें।
वहीं, दूसरी तरफ मुलायम सिंह यादव के सगे छोटे भाई शिवपाल यादव ने बयान दिया कि मुख्यमंत्री नेताजी ही बनेंगे। शिवपाल अखिलेश को आसानी से मुख्यमंत्री बनने देने के पक्ष में नहीं हैं। इस बीच पार्टी के मुस्लिम मुखौटे और मुलायम के करीबी मोहम्मद आज़म खान ने अभी तक चुप्पी साध रखी है और अपने पत्ते नहीं खोले हैं। लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान अखिलेश और उनके बीच मची रही खटास साफ कहती है कि वे भी अपने बुजुर्ग साथी ‘नेताजी’ को ही मुख्यमंत्री बनवाना चाहते हैं।
मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी कहने को लोहिया की विचारधारा में यकीन रखती है। लेकिन हकीकत में वह खानदानी शफाखाना ही बनी हुई है। सत्ता पास दिखते ही उसे भोगने की ललक यादव बंधुओं में शुरू हो गई है। अखिलेश की सबसे ज्यादा मुखालफत उनके चाचा शिवपाल यादव कर रहे हैं। शिवपाल के खेमे का तर्क है कि अखिलेश का पार्टी के लिए कोई योगदान नहीं है। उनका सिर्फ यही योगदान है कि वे मुलायम के बेटे हैं। लेकिन उनसे ज्यादा अच्छे तो प्रतीक यादव रहेंगे जो नेताजी के ही पुत्र हैं और अखिलेश के मुकाबले ज्यादा युवा भी हैं।
इस खेमे का कहना है कि शिवपाल सिंह यादव को मुख्यमंत्री बनाना चाहिए क्योंकि पूरे पांच साल मायावती सरकार के दमन को मुकाबला तो शिवपाल ने ही किया है। यह भी नहीं स्वीकार हो तो मुसलमानों के दम पर सत्ता में आनेवाली सपा को किसी मुस्लिम नेता, मसलन आज़न खान को मुख्यमंत्री बना देना चाहिए।
लेकिन एक तबका यह कह रहा है कि हो सकता है कि खुद मुलायम सिंह ही अखिलेश के नाम का प्रस्ताव पेश कर दें। इस तबके का तर्क है कि डीपी यादव को पार्टी के बाहर रखने के लिए मुलायम ने ही अखिलेश को आगे किया। यह अखिलेश की राह आसान बनाने और आज़म खान को किनारे करने के लिए चला गया मुलायम का दांव था। जो भी हो, इतना तय है कि इन यदुवंशियों में राजगद्दी हासिल करने के लिए मारामारी शुरू हो चुकी है। मुलायम मुख्यमंत्री बने तो कुछ समय तक कुनबे में शांति रह सकती है। लेकिन अगर अखिलेश को सत्ता मिल गई तो कुर्सी के नीचे से कालीन का खींचना पहले दिन से ही शुरू हो जाएगा। वैसे, इस कुनबे में मची सियासी जंग के किस्से और भी हैं…