सरकार पेट्रोल के मूल्यों पर पिछले साल जून से ही अपना नियंत्रण हटा चुकी है और इसका फैसला अब नफे-नुकसान की बाजार शक्तियों के हिसाब से होता है। हमारे यहां पेट्रोलियम पदार्थों के दाम सीधे अंतरराष्ट्रीय बाजार से तय होते हैं क्योंकि देश में इनके मूल स्रोत कच्चे तेल की 78 फीसदी मांग आयात से पूरी की जाती है। यही नहीं, अंतरराष्ट्रीय मूल्य के अलावा रुपए की विनिमय दर भी पेट्रोल मूल्यों को प्रभावित करने लगी है।
इधर रुपया डॉलर के सापेक्ष गिरते-गिरते दो सालों के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया है। बुधवार को रिजर्व बैंक की संदर्भ दर 47.8055 रुपए प्रति डॉलर रही, जबकि बाजार में एक डॉलर 47.60 रुपए का हो गया। इससे पहले 29 सितंबर 2009 को डॉलर की विनिमय दर 48.02 रुपए तक गई थी। उसके बाद डॉलर 44-45 रुपए के आसपास ही रहा। रुपए के सस्ता और डॉलर के महंगा हो जाने से समान अंतरराष्ट्रीय मूल्य के बावजूद तेल कंपनियों की आयात लागत बढ़ गई है। इसकी भरपाई के लिए वे पेट्रोल के दाम प्रति लीटर 3 रुपए बढ़ाने की सोच रही हैं।
समाचार एजेंसी ने उच्च सरकारी अधिकारी के हवाले कहा है, “रिटेल में पेट्रोलियम तेल बेचनेवाली कंपनियां प्रतिदिन पेट्रोल की बिक्री पर 2.61 रुपए प्रति लीटर या 15 करोड़ रुपए प्रतिदिन का घाटा उठा रही हैं। स्थानीय टैक्स को मिला दें कि घरेलू मूल्य को अंतरराष्ट्रीय मूल्य के समतुल्य बनाने के लिए प्रति लीटर दाम 3 रुपए बढ़ाने की जरूरत है।”
बता दें कि पेट्रोल की रिटेल बिक्री मुख्य रूप से तीन सरकारी कंपनियां – इंडियन ऑयल, बीपीसीएल और एचपीसीएल करती हैं। पेट्रोल पर मूल्य नियंत्रण हट जाने के बावजूद परोक्ष राजनीतिक दबाव के चलते ये कंपनियां लागत से थोड़ा कम दाम पर पेट्रोल बेच रही हैं। इसके चलते चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से लेकर अब इनको पेट्रोल पर 2450 करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है।
उक्त सरकारी अधिकारी का कहना है कि मौजूदा मूल्यों पर तेल मार्केटिंग कंपनियों को पेट्रोल की बिक्री पर 2850 करोड़ रुपए का और नुकसान होगा जिससे पूरे वित्त वर्ष में पेट्रोल से हुआ नुकसान 5300 करोड़ रुपए हो जाएगा। इसलिए तेल कंपनियां जल्दी ही पेट्रोल के दाम बढ़ाने का फैसला कर सकती हैं।
पेट्रोल के अलावा उक्त तीन सरकारी तेल कंपनियां डीजल, रसोई गैर और केरोसिन को लागत से कम दाम पर बेचने से हर दिन 263 करोड़ रुपए का घाटा सह रही हैं। इसके एवज में उन्हें डीजल पर 6.05 रुपए, केरोसिन पर 23.25 रुपए और रसोई गैस के सिलिंडर पर 267 रुपए की सब्सिडी मिल रही है। सरकारी अफसर का दावा है कि अप्रैल से अब तक तेल कंपनियों पर 65,000 करोड़ रुपए का बोझ पड़ चुका है। अगर हम कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय दाम 110 डॉलर प्रति बैरल लेकर चलें तो इनकी कुल अंडर-रिकवरी इस साल 1,21,571 करोड़ रुपए की होगी।
अधिकारी का कहना था कि डॉलर के हर एक रुपए महंगा होने से तेल कंपनियों की अंडर-रिकवरी साल भर में 9000 करोड़ रुपए बढ़ जाती है। इस तरह रुपए का कमजोर होना तेल कंपनियों के लिए हमेशा महंगा पड़ता है। इसलिए इस बार तेल कंपनियां रुपए की कमजोरी के चलते पेट्रोल को महंगा करना चाहती हैं। गुरुवार को इस सिलसिले में तेल कंपनियों के आला अधिकारी पेट्रोलियम मंत्राय के साथ बैठक करनेवाले हैं।
बता दें कि पिछले साल जून में सरकारी अंकुश हटने के बाद तेल कंपनियां अब तक नौ बार पेट्रोल के दाम कुल मिलाकर 30 फीसदी बढ़ा चुकी हैं। पिछली बार उन्होंने 15 मई 2011 को पेट्रोल के दाम 5 रुपए प्रति लीटर बढ़ाए थे।