जीते हैं हमारे राजनयिक, राजनेता नहीं!

किसी व्यक्ति, कंपनी या संगठन की अहमियत तब मानी जाती है, जब उसके जाने से देश, दुनिया व समाज को बड़ा नुकसान हो और उसके अभाव को भर पाना मुश्किल हो। लेकिन क्या जी-20 के बारे में यही बात कही जा सकती है? जी-20 से अब जी-21 बन गया मंच आज खत्म हो जाए तो इससे दुनिया का कोई नुकसान नहीं होगा। एक फायदा ज़रूर होगा कि इसके आयोजन पर हर साल होनेवाली करोड़ों डॉलर की बर्बादी रुक जाएगी और आगे नरेंद्र मोदी जैसे दूसरे देशों के सत्ता-प्रमुख अपने फायदे के लिए इसका राजनीतिक इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे। यकीनन जी-20 का साझा डिक्लेरेशन भारत के राजनय की जीत है। लेकिन यह मूलतः किसी राजनेता नहीं, बल्कि केरल कैडर के आईएएस अमिताभ कांत और उनके चार आईएफएस सहयोगियों की मेधा व मेहनत का कमाल है। ये हैं – मॉरीशस व नाइजीरिया में राजदूत रह चुके अभय ठाकुर, संयुक्त राष्ट्र महासभा में काम कर चुके नागराज नायडू ककनूर और संयुक्त राष्ट्र के स्थाई मिशन में कार्यरत पटना के आशीष सिन्हा व उनकी सहकर्मी ईनाम गंभीर। काश! ऐसी ही राजनयिक कुशलता हमारे प्रधानमंत्री राजनीति में विरोधियों और विपक्ष के प्रति दिखा देते तो देश में आज इतनी राजनीतिक कटुता व रार नहीं होती। अब बुधवार की बुद्धि…

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