रिजर्व बैंक के गवर्नर पद से ऊर्जित पटेल का इस्तीफा देना कोई सामान्य घटना नहीं थी। भारत के केंद्रीय बैंक के आठ दशक से ज्यादा के इतिहास में यह पहली घटना थी, जब किसी गवर्नर ने बीच कार्यकाल में इस्तीफा दिया था। उनका तीन साल का कार्यकाल 4 सितंबर 2019 को खत्म होना था। लेकिन उन्होंने इसके नौ महीने ही इस्तीफा दे दिया। पटेल ने मात्र 88 शब्दों के अपने इस्तीफे में इसकी वजह व्यक्तिगत बताई थी। लेकिन इसका सीधा वास्ता रिजर्व बैंक की स्वायत्तता से था। केंद्र सरकार ने कई महीनों से रिजर्व बैंक के खजाने पर नज़र गढ़ा रखी थी। पटेल इसके लिए कतई तैयार नहीं थे। उनके इस रुख से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बेहद चिढ़े हुए थे। मोदी ने 14 सितंबर 2018 को एक बैठक में पटेल को खजाने पर कुंडली मारकर बैठा सांप तक कह डाला था। तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने झूठमूठ के आरोपों के झड़ी लगा रखी थी। सरकार और रिजर्व बैंक में चल रही इस तरह की तीखी नोकझोंक से परेशान होकर तब के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने चेतावनी दी थी कि केंद्रीय बैंक की स्वतंत्रता से समझौता करना ‘विनाशकारी’ हो सकता है। पर केंद्र सरकार ने एक नहीं सुनी और आचार्य ने भी अपना कार्यकाल खत्म होने से छह महीने इस्तीफा दे दिया। अब बुधवार की बुद्धि…
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