भारत के सामने अब मुद्रास्फीति को थामना नहीं, बल्कि आर्थिक विकास दर को बढ़ाना बड़ी चुनौती है। रिटेल मुद्रास्फीति की दर नवंबर में 5.88% थी। यह दिसंबर में और घटकर 5.72% हो गई है। यह काफी सुखद संकेत है। लेकिन दुखद बात यह है कि देश में औद्योगिक निवेश नहीं बढ रहा। वह भी तब, जब मोदी सरकार जब देश के भौतिक और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर को लगातार बेहतर बनाने के साथ ही उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन (पीएलआई) दे रही हो। होना यह चाहिए था कि चीन से दुनिया के मोहभंग और वहां की आर्थिक संभावनाओं के क्षीण होते जाने से भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी पूंजी निवेश की बाढ़ आ जानी चाहिए थी। लेकिन ज़मीनी स्तर पर फिलहाल ऐसा कुछ नहीं होता दिख रहा। घरेलू पूंजी निवेश भी एकदम ठंडा पड़ा है, वह भी तब, जब क़ॉरपोरेट क्षेत्र और बैंकों की बैलेस शीट की पुरानी समस्या अंततः हल हो चुकी है। अब मंगलवार की दृष्टि…
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