या चला लो ज्योतिष या करो ट्रेडिंग

यह ट्रेडिंग की दुनिया है। यहां हर कोई मिलने पर हालचाल से पहले यही पूछता है कि बाज़ार कहां जा रहा है, निफ्टी कहां जाएगा। हालांकि उसके पास इसका अपना जवाब भी होता है। बस, वह आपसे उसकी पुष्टि करना चाहता है। बड़ी मुश्किल से इक्का-दुक्का लोग मिलते हैं जो कहते हैं कि बाज़ार कहीं भी जाए, इससे हमें क्या फर्क पड़ता है। हम तो ट्रेडर हैं। हमारा काम ज्योतिषी की तरह भविष्यवाणी करना नहीं, कमाना है।

बहुत सीधी-सी बात है कि बिना अपनी सीमा और स्थिति को समझे ऊंची-ऊंची बातें करने या सोचने से कुछ नहीं हासिल होता। हां, इस चक्कर में समय, ऊर्जा और धन तीनों का नुकसान होता है। ऊपर से जगहंसाई अलग से। बता दें कि साल 2013 में अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार जीतनेवाले तीन अर्थशास्त्रियों – यूजीन फामा, लार्स पीटर हैनसेन और रॉबर्ट शिलर के सालों के शोध का सार यह है कि, “अगले कुछ दिन या हफ्ते में स्टॉक्स या बांड के भाव कहां जाएंगे, इसकी भविष्यवाणी करने का कोई तरीका नहीं है। लेकिन इतना अनुमान ज़रूर लगाया जा सकता है कि अगले तीन से पांच सालों जैसी लंबी अवधि में इनके भाव मोटामोटी कहां तक जा सकते हैं।”

सोचिए, जब दुनिया के इतने बड़े अर्थशास्त्री गहन अध्ययन-विश्लेषण के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं तो हम आप किस खेत की मूली हैं। ऐसे में शेयर बाज़ार को लेकर ज्योतिषबाज़ी करने का क्या मतलब है? खासकर ट्रेडिंग से कमाई की कोशिश करनेवालों के लिए। ध्यान दें, जब आपका प्रस्थान बिंदु ही गलत होगा तो आप सही लक्ष्य तक कैसे पहुंच सकते हैं।

इस संदर्भ में दो भविष्यवाणियां आपके सामने पेश करना चाहूंगा। बाज़ार में आम हवा चली हुई है कि जुलाई तक निफ्टी बढ़कर कम से कम 7000 तक पहुंच जाएगा क्योंकि हर कोई मानकर चल रहा है कि मई में आम चुनावों के बाद नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं। यकीनन आपने भी ऐसा सुना होगा या हो सकता है कि आपकी राय भी ऐसी ही हो। लेकिन ध्यान दें। यह राय है, किसी ठोस विश्लेषण पर आधारित निष्कर्ष नहीं। और, राय या सदिच्छा से बाज़ार नहीं चलता। वह तो खरीदने-बेचनेवालों की मनःस्थिति और उनके जेब में कितने नोट हैं, इससे चलता है।

दूसरी भविष्यवाणी हमारे एक सुधी पाठक ने अर्थकाम के फेसबुक पेज पर की है। उनका कहना है कि ज्योतिष के अनुसार निफ्टी फरवरी तक गिरकर 5600 तक पहुंच सकता है। बडे-बड़े ज्योतिषी तक जब खुद अपना भविष्य नहीं जानते कि उनकी शरण में आया शख्स अगले ही पल उन्हें झापड़ रसीद कर सकता है तो उनकी बातों पर क्या यकीन करना! अरे, यह सब उनका धंधा है। उनका बिजनेस मॉडल है। तमाम बिजनेस चैनल और वहां सुबह से शाम तक बैठे एनालिस्ट हमारे कुतुहल का फायदा उठाकर अपना धंधा चला रहे हैं। उन्हें इससे कतई मतलब नहीं है कि हम कितना कमाते या गंवाते हैं। हम जैसे जितने ज्यादा लोग उन्हें देखेंगे, चैनल उतनी ही बड़ी संख्या पेश करके विज्ञापनदाताओं को अपने स्लॉट बेचेगा।

हम उनके धंधे के ट्रैप में फंसकर अपना धंधा भूल जाते हैं। यही वजह है कि 95 फीसदी ट्रेडर घाटे में रहते हैं। उनकी किस्मत नहीं, बुद्धि खराब है, सोच खराब है। बाकी जो 5 फीसदी ट्रेडर कमाते हैं, उन्हें इससे कतई फर्क नहीं पड़ता कि कल या अगले महीने बाज़ार कहां जाएगा। वे सिर्फ इतना देखते हैं कि बाज़ार अभी जा कहां रहा है। गोल्डमैन सैक्स या ऐसी तमाम दूसरी फर्में हमें दिखाने, फंसाने और हमारी मानसिकता को पकड़ने के लिए बेतुकी भविष्यवाणियां करती हैं। तभी तो कुछ महीने पहले तक निफ्टी को 4700 तक जाने की भविष्यवाणी को अचानक बड़ी ही बेशर्मी से 7000 में तब्दील कर देती हैं।

फिर ऐसी देशी-विदेशी संस्थाओं के पास खुद इतने नोट होते हैं कि वे किसी भी स्टॉक की दशा-दिशा बदल सकते हैं। नोमुरा, एलआईसी, रिलांयस या एचडीएफसी म्यूचुअल फंड के लिए 400-500 करोड़ रुपए दाएं-बाएं का खेल है। हम अपने चंद हज़ार या लाख रुपए लेकर बाज़ार या किसी स्टॉक का बाल भी बांका नहीं कर सकते। इस हकीकत को हमें अपने मन में कहीं गहरे बैठा लेना होगा। साथ ही हमेशा हमें यह ध्यान रखना होगा कि हम शेयर बाज़ार में ट्रेडिंग किसी शौक के लिए नहीं, बल्कि कमाने के लिए कर रहे हैं। यह हमारा धंधा है। इसलिए हमें दूसरों के धंधे का निवाला नहीं बनना है।

बाज़ार ऊपर जाए या नीचे, कोई स्टॉक बढ़े या घटे, इस पर अपना माथा खराब करने के बजाय हमें बराबर यही देखना है कि उसमें बड़ी संस्थाओं व प्रोफेशनल ट्रेडरों की तरफ से आनेवाली मांग और सप्लाई का संतुलन क्या है। इसी के आधार पर हम निकालते हैं कि इसके बढ़ने और घटने की प्रायिकता कितनी-कितनी है। अगर बढ़ने की प्रायिकता कम से कम 75 फीसदी और गिरने की प्रायिकता ज्यादा से ज्यादा 25 फीसदी है यानी सौदा गलत निकला तो 25 रुपए जाएंगे और सही निकला तो 75 रुपए मिल सकते हैं, दूसरे शब्दों में रिस्क-रिवॉर्ड अनुपात 1:3 का है, तभी उस सौदे को हाथ लगाना चाहिए।

एक नियम और गांठ बांध लें कि जो पहले हुआ है, आगे भी वैसा ही होगा, ऐसा कतई जरूरी नहीं है। हम आम तौर यह गलती करते हैं। यह बीते साल 2013 का बड़ा निर्मम सबक है। नोट करें कि 2013 में दुनिया में सोने की मांग जमकर बढ़ी, फिर भी सालोंसाल से बढ़ रहा सोना साल भर में 28 फीसदी टूट गया। अंत में बस इतना कि ज्योतिष की मानसिकता से निकलकर कुशल व प्रोफेशनल ट्रेडर की सोच अपनाएं। साल 2014 में अगर केवल एक कसम ले लें कि ट्रेडिंग करते वक्त किसी ज्योतिषबाज़ी के चक्कर में नहीं पड़ेंगे तो अपने भले के लिए शायद आपको किसी भगवान की जरूरत न पड़े।

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