भारत में यूरोपीय देशों जैसी सामाजिक सुरक्षा होती तो आम लोगों को बचत के लिए मगज़मारी नहीं करनी पड़ती। ऊपर से वहां की सरकारें टैक्स का धन अवाम को संकट से बचाने के लिए खर्च करती हैं, जबकि अपने यहां सरकार हर आपदा में टैक्स बढ़ाने के अवसर खोजती है। कच्चे तेल के दाम पिछले आठ साल में बराबर घटते रहे। इधर बढ़ने के बावजूद 2014 से कम हैं। फिर भी हमारी सरकार ने पेट्रोल-डीज़ल व रसोई गैस के दाम कम नहीं होने दिए। कोविड संकट के बावजूद इस दौरान उसने अवाम से बतौर सेस व एक्साइज़ ड्यूटी करीब 25 लाख करोड़ रुपए वसूले हैं। वहीं, जर्मनी की सरकार रूस-यूक्रेन युद्ध से बढ़ी गैस की कीमतों की भरपाई के लिए हर बाशिंदे के बैंक खाते में इस महीने 300 यूरो मुफ्त डाल रही है। अब तथास्तु में आज की कंपनी…
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