सरकारी, न देशी, ना विदेशी, पूंजी कहां?

मोदी सरकार इन दिनों बहुत परेशान है। जीडीपी की विकास दर घटकर चार साल के न्यूनतम स्तर पर। जिस विदेशी पूंजी पर भरोसा किया, वो देश छोड़कर भागे जा रही है। देश में शुद्ध एफडीआई (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) 12 साल के न्यूनतम स्तर पर। कोविड के बाद से सरकार ने खुद पूंजी व्यय बढ़ाकर अर्थव्यवस्था को जो फौरी आवेग दिया था, उसका दम फूलने लगा है। बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 11,11,111 करोड़ रुपए के पूंजीगत खर्च करने का जो शुभ आंकड़ा उछाला था, वो अब अशुभ बनता दिख रहा है। यह अनुमान से कम से कम 1,50,000 करोड़ रुपए कम रह सकता है। चालू वित्त वर्ष 2024-25 के पहले आठ महीनों में पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि की तुलना में केंद्र सरकार का पूंजीगत व्यय 12% और 20 बड़े राज्यों का पूंजी व्यय 6% कम रहा है। साथ ही पहली छमाही में सरकारी उद्यमों का पूंजी निवेश 10.8% घटा है। अर्थव्यवस्था में पूंजी निवेश को दर्शाते सकल स्थाई पूंजी निर्माण (जीएफसीएफ) के बढ़ने की दर 9% से घटकर 6.4% पर आने का अंदेशा है। पूंजी निवेश में निजी क्षेत्र का हिस्सा मात्र 12% रह गया है। वो नया निवेश नहीं कर रहा क्योंकि मांग नहीं है। कॉरपोरेट क्षेत्र ने अप्रैल से दिसंबर 2024 तक पूंजी बाज़ार से जो 3.31 लाख करोड़ जुटाए, उसका 63% प्रवर्तकों को मिला और 37% पूंजी ही काम में लगी। देश में पूंजी का अकाल पड़ता दिख रहा है। अब सोमवार का व्योम…

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