ना मांग ना सप्लाई, लोचा है कहीं और!

अपने यहां मांग ज्यादा होने से कारण महंगाई नहीं आई है। दगरअसल, नवंबर 2016 में नोटबंदी के बाद पांच सालों से लोगों की आमदनी घट रही है। कामधंधा मंदा चल रहा है। नतीज़तन मांग घट गई है। वाहनों से लेकर उपभोक्ता वस्तुओं के उद्योग तक मजबूरन क्षमता से कम उत्पादन कर रहे हैं। फिर भी इस दौरान अगर रिटेल निवेशकों ने शेयर बाज़ार में जमकर धन लगाया है तो ऐसा करनेवाले आम नहीं, बेहद खास लोग हैं। हो सकता है कि जनधन लूटनेवाले राजनेताओं का कालाधन और रिश्वत से करोड़ों जुटानेवाले नौकरशाहों का बेनामी धन बाज़ार में आया हो। साथ ही आईटी व रिटेल उद्योग से जुड़े कर्मचारियों के वेतन-भत्ते इस दौरान बढ़े हैं तो उनका इफरात धन भी स्टॉक्स व क्रिप्टो करेंसी में लगा हो। अब शुक्रवार का अभ्यास…

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