विवेक बघार डाला स्वार्थों के तेल में। आदर्श खा गए! कीचड़ में धंस गए!! अब तक क्या किया, जीवन क्या जिया! बहुत-बहुत ज़्यादा लिया, दिया बहुत-बहुत कम। मर गया देश। अरे, जीवित रह गए तुम!!
2011-08-15
विवेक बघार डाला स्वार्थों के तेल में। आदर्श खा गए! कीचड़ में धंस गए!! अब तक क्या किया, जीवन क्या जिया! बहुत-बहुत ज़्यादा लिया, दिया बहुत-बहुत कम। मर गया देश। अरे, जीवित रह गए तुम!!
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