सिस्टम में धन का प्रवाह बढ़ने से ब्याज दर घटने लगती हैं। इससे जहां उद्योग, व्यापार व उपभोक्ताओं को सहूलियत हो जाती है, वहीं जिनके पास सीमित पूंजी है और जो एफडी या बांड जैसे ऋण-प्रपत्रों पर मिलनेवाले ब्याज की आय पर निर्भर हैं, उनके लिए मुश्किल हो जाती है। वे ज्यादा रिटर्न पाने के लिए रिस्की निवेश माध्यमों की तरफ जाने को मजबूर हो जाते हैं। यही वजह है कि अमेरिका, यूरोप व जापान जैसे विकसित देशों के निवेशक भारत जैसे देशों के शेयर बाज़ारों का रुख करते हैं। पिछले डेढ़ साल में भारतीय शेयर बाज़ार में जमकर विदेशी धन आया है तो यहां तेज़ी पर तेज़ी छाई है। अब गुरु की दशा-दिशा…
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